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नज़्म
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
बरबत की सदा पर रो देना मुतरिब के बयाँ पर रो देना
एहसास को ग़म बुनियाद न कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी
वो सुब्ह कभी तो आएगी
साहिर लुधियानवी
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शेर
मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
मुनव्वर राना
नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
ख़िश्त-ए-बुनियाद-ए-कलीसा बन गई ख़ाक-ए-हिजाज़
हो गई रुस्वा ज़माने में कुलाह-ए-लाला-रंग
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लेनिन
मय-ख़ाना की बुनियाद में आया है तज़लज़ुल
बैठे हैं इसी फ़िक्र में पीरान-ए-ख़राबात
अल्लामा इक़बाल
मर्सिया
ये गौहर-ए-अब्बास हैं पाक उन की ये बुनियाद
अब्बास-ओ-नजफ़ एक हैं गिनिए अगर एदाद
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
नज़्म
उमीद
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाए जाएगी