aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "تناؤ"
मसूद तन्हा
born.1978
लेखक
ज़ुबैर अहमद तन्हा मलिक रामपुरी
born.1998
शायर
आसिम तन्हा
born.1992
आनन्द पांडेय तन्हा
born.1957
तन्हा तिम्मापुरी
born.1937
अनिल शर्मा तन्हा
रमेश तन्हा
born.1936
अली तन्हा
मोहम्मद ईसा तन्हा
1756/7 - 1807/8
तनहा अंसारी
1914 - 1969
मोहम्मद यहया तंहा
1890 - 1966
सय्यद शहाबुद्दीन तन्हा
तनहा निज़ामी
रमेश तनहा
रज़ी अहमद तन्हा
संपादक
तुम्हारे नख़रों से अपनी अन-बन तो बढ़ती जाएगी सुन रहे होतुम एक सॉरी से ख़त्म कर सकते हो तनाव मुझे मनाओ
हाए तेरी छातियों का तन-तनावफिर तेरी मजबूरियाँ नाचारीयाँ
सुना हुआ था हिज्र मुस्तक़िल तनाव हैवही हुआ मिरा बदन कमान बन गया
वो समझता था कि हर शख़्स सिर्फ़ एक काम लिए पैदा होता है। चुनांचे शंभू के बारे में चौपाल पर जब कभी ज़िक्र छिड़ता तो वो हमेशा यही कहा करता था, “खाद कितनी बदबूदार चीज़ों से बनती है पर खेती-बाड़ी उसके बिना हो ही नहीं सकती। शंभू के हर सांस...
ये तनाव क़ुदरत ने दो दिलों में क्यूँ रक्खामुझ को कज-कुलाही दी उस को कज-अदाई दी
तन्हाई के विषय पर चयन क्ये हुए ये शेर पढ़िए जो तन्हा होते हुए भी आप के अकेले-पन को भर देंगे और तनहाई को जीने का एक नया अनुभव देंगे.
क्लासिकी उर्दू शाइरी में तन्हाई का संदर्भ प्रेम का पारंपरिक सौंदर्य है । क्लासिकी शाइरी का महबूब जब मिलन से इनकार करता है तो उस का आशिक़ विरह के दुख से गुज़रता है । अब केवल महबूब की याद उस के जीवन को सहारा देती है । तन्हाई और एकाकीपन के अर्थों का विस्तार उर्दू की आधुनिक शाइरी में होता है और अब इश्क़-ओ-मोहब्बत से आगे का सफ़र तय होता है । आधुनिक शाइरी में तन्हाई कभी मशीनी ज़िंदगी का रूपक बनती है तो कभी इंसान के अपने अस्तित्व और ख़ाली-पन को विषय बनाती है । यहाँ प्रस्तुत संकलन से आप को उर्दू शाइरी के ट्रेंड को समझने में मदद मिलेगी ।
तनावتناؤ
tension
तन्हा चाँद
मीना कुमारी नाज़
काव्य संग्रह
Tanha Tanha
अहमद फ़राज़
Deewan-e-Tanha
सय्यद किफ़ायत अली काफी
शाइरी
तन्हा तन्हा
Tez Hawa Aur Tanha Phool
मुनीर नियाज़ी
अँधेरी रात का तन्हा मुसाफ़िर
शहज़ाद मंज़र
नॉवेल / उपन्यास
Rah-e-Surab Ke Tanha Musafir
एहराज़ नक़वी
महिलाओं की रचनाएँ
Shakh-e-Tanha
ख़ुर्शीद रिज़वी
Batein Allah Walon Ki
जीवनी
Sair-ul-Musannifeen
इंतिख़ाब / संकलन
Bhool ki Ghantiyan
अफ़साना
Siyarul Musannefeen
तन्हा नहीं हूँ मैं
एजाज़ अंसारी
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
कैसी अन-जानी सी मासूम ख़ता करते हैंतेरे क़ामत का लचकता हुआ मग़रूर तनाव
एक फ़्रांसीसी मोफ़क्किर कहता है कि मूसीक़ी में मुझे जो बात पसंद है वो दरअसल वो हसीन ख़वातीन हैं जो अपनी नन्ही नन्ही हथेलियों पर थोड़ियां रखकर उसे सुनती हैं। ये क़ौल मैंने अपनी बर्रियत में इसलिए नक़ल नहीं किया कि मैं जो कव़्वाली से बेज़ार हूँ तो इसकी असल...
منی نے کس کے جوڑا بنا لیا۔ لیکن بات مایا کی نظر سے بچ نہ سکی۔ وہ جان گئی تھی کہ آج تک نوکرانی والی بات وہ بھولے نہیں۔ دو چار روز تو بات ہنسی مذاق میں ٹلتی رہی۔ ماں دل ہی دل میں اترا بھی رہی تھیں کہ لالہ...
ज़बाँ से कुछ न कहूँगा ग़ज़ल ये हाज़िर हैदिमाग़ में कई दिन से तनाव ऐसा था
माई जीवां ख़ामोशी से अजनबी की बातें सुनती रही जो कि उसके शौहर का बहुत ही मो’तक़िद नज़र आता था। उसने इधर उधर की और बहुत सी बातें करने के बाद बुढ़िया से कहा, “मैं बारह कोस से चल कर आया हूँ, एक ख़ास बात कहने के लिए।” अजनबी ने...
اتنی بات ہر شخص جانتا ہے کہ عاشقانہ شاعری کی بنیاد معنیاتی تثلیث پر ہے یعنی عاشق، معشوق و رقیب دو عناصر میں باہمی ربط اور تیسرے عنصر سے تضاد کا رشتہ جو تخلیقی اظہار میں تناؤ پیدا کرتا ہے اور جان ڈالتا ہے۔ مزے کی بات یہ ہے کہ...
ग़ुलाम अली का इरादा था कि क़ैद होने से पहले पहले वो निगार को अपनी बीवी बना ले। मुझे याद नहीं कि वो ऐसा क्यों करना चाहता था क्योंकि क़ैद से वापस आने पर भी वो उससे शादी कर सकता था। उन दिनों कोई इतनी लंबी क़ैद तो होती नहीं...
क्या बीवियां हैं, पाक साफ़, बिलौर जैसी गोरी। उजले बुर्राक़ कपड़े, नज़ाकत ऐसी जैसी हवा की। कश्ती बहते हुए चिराग़ की तरह पानी पर चली जा रही है। दोनों तरफ़ खुले खुले मैदान जो हरी हरी दूब से ढके हुए हैं। बीच बीच में फूलों के रंगीन तख़्ते और फलों...
मदन सुंदर के पैरों की चाप सुनने के लिए बेक़रार हमा-तन गोश बन गई। दबे पैरों से वो पलंग से उठा होगा, उसने मंज़र-नामा-तामीर करना शुरू कर दिया। उसकी तरफ़ खिंचा चला आ रहा होगा। एक, दो, तीन, चार, पाँच, उसने अंदाज़े से वो सारे क़दम गिन डाले, जो उस...
“भाई जान! आप बहुत सोए।” “हाँ... शायदन।”...
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