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लेख
ख़ाली मैदान में अगर कुत्ता भी गुज़रे तो लोग उसकी तरफ़ मुतवज्जेह हो जाते हैं। (वालेरी)...
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
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ग़ज़ल
अपने इक़रार पे क़ाएम न वो इंकार पे है
किस परी-ज़ाद का साया मिरे दिलदार पे है