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तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
ग़ज़ल
अपनी अपनी सब की आँखें अपनी अपनी ख़्वाहिशें
किस नज़र में जाने क्या जचता है क्या जचता नहीं
अनवर मसूद
ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले