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ग़ज़ल
इश्क़ भी इस को न समझूँ तो बता तू किस लिए
दिल में हासिल के ख़ुदा बन कर उतर आया है आज
सुजीत सहगल हासिल
ग़ज़ल
ये कैसी छेड़ है क्यों पूछते हो मुद्दआ-ए-दिल
हुए जब मुद्दई के तुम सुनो क्यूँ मुद्दआ' मेरा
अब्बास अली ख़ान बेखुद
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ग़ज़ल
यहाँ आसाँ नहीं जीना यहाँ मरना भी मुश्किल है
मोहब्बत में किसी को मुद्दआ-ए-दिल नहीं मिलता
नज़ीर अंसारी
ग़ज़ल
ख़ता क्या की ज़बाँ पर मुद्दआ-ए-दिल अगर लाया
ख़मोशी से जो इज़हारबयाँ होता तो क्या होता
सय्यद मसूद हसन मसूद
नज़्म
बी अम्माँ से ख़िताब
मुद्दआ-ए-दिल तिरा इक गौहर-ए-उम्मीद है
जो फ़ज़ा-ए-तार में इक शोला-ए-ख़ुर्शीद है
बिलक़ीस जमाल बरेलवी
ग़ज़ल
न मिलता मुद्दआ-ए-दिल दिरम मिलता जो मुनइ'म से
मगर इक दाग़ बन कर वो कफ़-ए-साइल में रह जाता