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ग़ज़ल
जुज़ ज़ुल्फ़ सूझता नहीं ऐ मुर्ग़-ए-दिल तुझे
ख़ुफ़्फ़ाश तू नहीं है कि ज़ुल्मत-परस्त है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
याद में तेरी रक़ीब-ए-रू-सियह जागा तो क्या
मर्तबा आली न हो ख़ुफ़्फ़ाश-ए-शब-बेदार का
हैदर अली आतिश
नज़्म
नवेद-ए-सुब्ह
ہاں ، نماياں ہو کے برق ديدئہ خفاش ہو
اے دل کون ومکاں کے راز مضمر! فاش ہو
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
मुर्ग़-ए-ज़र्रीन-ए-फ़लक पर है यक़ीन-ए-ख़ुफ़्फ़ाश
किस क़दर मेरे दिनों में हुईं सारी रातें
इमाम बख़्श नासिख़
नज़्म
साल-ए-नौ का हंगामा
ज़र्रे के साथ जंग है जंग आफ़्ताब से
ख़ुफ़्फ़ाश की अबस है शह-ए-ख़ावराँ से जंग
ज़फ़र अली ख़ाँ
ग़ज़ल
अलीमुल्लाह
ग़ज़ल
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है