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नज़्म
शिकवा
नक़्श-ए-तौहीद का हर दिल पे बिठाया हम ने
ज़ेर-ए-ख़ंजर भी ये पैग़ाम सुनाया हम ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आवारा
ले के इक चंगेज़ के हाथों से ख़ंजर तोड़ दूँ
ताज पर उस के दमकता है जो पत्थर तोड़ दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
सिनान ओ गुर्ज़ ओ शमशीर ओ तबर ख़ंजर नहीं लाज़िम
बस इक एहसास लाज़िम है कि हम बुअदैन हैं दोनों