aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "رولیہ"
रुक़य्या बानो
लेखक
पंडित रलया राम शर्मा
के. एल. रलया राम
रोली बुक्स प्राइवेट लिमिटेड, इंडिया
पर्काशक
(इन्तिखाब: मज़ामीन-ए-पतरस मुरत्तिबा वजाहत अली संदेलवी, स102)...
“कनीज मर जाएगी पर इन्हें तकलीफ न होने देगी।” कनीज़ ने जवाब दिया और रोते हुए बच्चों को लिपटा कर कोठरी में चली गई। दीन मोहम्मद सकीना को बैलगाड़ी में बिठा कर सामान उठाने आया तो कनीज़ को यूँ देखने लगा जैसे कुछ कहना चाहता हो।...
جب وہ بہت چھوٹا تھا، میں منہ سے سیٹی نکال کر اسے پکارتا۔ وہ سیٹی پہچانتا تھا۔ گھر میں جہاں کہیں ہوتا، سیٹی سن کر پالتو جانوروں کی طرح دوڑتا ہوا فوراً پہنچ جاتا۔ اسے پکارنے کی یہ عادت اس کے ساتھ ہی پختہ ہوتی گئی۔ جب وہ میڈیکل میں...
जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी 'मुनीर'ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं
ईशर सिंह ने एक ही लपेट में अपने बालों का जूड़ा बनाते हुए जवाब दिया, “नहीं।” कुलवंत कौर चिड़ गई, “नहीं तुम ज़रूर शहर गए थे... और तुमने बहुत सा रुपया लूटा है जो मुझ से छुपा रहे हो।”...
लखनवी शाइ’री की तीसरी पीढ़ी के प्रमुख प्रतिनिधि शाइ’र। ख़्वाजा ‘आतिश’ के लाइक़ शागिर्द थे। अफ़ीम का शौक़ था, ख़ुद खाते और मेहमानों को खिलाते। वाजिद अ’ली शाह ने दो सौ रुपए माहवार वज़ीफ़ा बाँध रखा था, जिससे ऐश में गुज़रती थी।
तग़ाफ़ुल क्लासिकी उर्दू शायरी के माशूक़ के आचरण का ख़ास हिस्सा है । वो आशिक़ के विरह की पीड़ा से परीचित होता है । वो आशिक़ की आहों और विलापों को सुनता है । लेकिन इन सब से अपनी बे-ख़बरी का दिखावा करता है । माशूक़ का ये आचरण आशिक़ के दुख और तकलीफ़ को और बढ़ाता है । आशिक़ अपने माशूक़ के तग़ाफ़ुल की शिकायत भी करता है । लेकिन माशूक़ पर इस का कोई असर नहीं होता । यहाँ प्रस्तुत शायरी में आशिक़-ओ-माशूक़ के इस आचरण के अलग-अलग रंगों को पढ़िए और उर्दू शायरी के इश्क़-रंग का आनंद लीजिए ।
वहम एक ज़हनी कैफ़ियत है और ख़याल-ओ-फ़िक्र का एक रवैया है जिसे यक़ीन की मुतज़ाद कैफ़ियत के तौर पर देखा जाता है। इन्सान मुसलसल ज़िंदगी के किसी न किसी मरहले में यक़ीन-ओ-वहम के दर्मियान फंसा होता है। ख़याल-ओ-फ़िक्र के ये वो इलाक़े हैं जिनसे वास्ता तो हम सब का है लेकिन हम उन्हें लफ़्ज़ की कोई सूरत नहीं दे पाते। ये शायरी पढ़िए और उन लफ़्ज़ों में बारीक ओ नामालूम से एहसासात की जलवागरी देखिए।
Aamal Nama-e-Ruus
डी- मेकेंज़ी वाल्स
इतिहास
Urdu Novel Mein Niswani Kirdaron Ka Nafsiyati Aur Samaji Jaiza Nazeer Ahmad Se 1975 Tak
शोध
Draupadi
Aaina-e-Sanatan Dharm
Amal Nama-e-Roos Yani Tareekh-e-Roosia
विश्व इतिहास
मिर्ज़ा दाग़
जीवनी
Raja Ashok
Duniya Ki Tamam Aqwam Ke Liye Inami Chelanj Naqad Ek Lakh Rupaya
अननोन ऑथर
इस्लामियात
Hindustani Musalman Rawayya Aur Rujhan
मुशीर-उल-हक़
अन्य
Jang Aur Rupaya
इम्तियाज़ हुसैन खान
Aamal Nama-e-Ruse
Ek Rupiya Ki Kahani Aur Dosri Kahaniyan
असरार नदवी
Rupay Alam-e-Sakrat Me
ख़्वाजा हसन निज़ामी
Adab Aur Adabi Ravaiya
मुमताज़ अहमद ख़ाँ
बहुत रोया वो हम को याद कर केहमारी ज़िंदगी बरबाद कर के
रोया हूँ तो अपने दोस्तों मेंपर तुझ से तो हँस के ही मिला हूँ
मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र'साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं
और अगर वो उससे ज़रूरत से ज़्यादा छेड़छाड़ करते तो वो उनको अपनी ज़बान में गालियां देना शुरू करदेती थी। वो हैरत में उसके मुँह की तरफ़ देखते तो वो उनसे कहती, “साहिब, तुम एक दम उल्लु का पट्ठा है। हरामज़ादा है... समझा।” ये कहते वक़्त वो अपने लहजे में...
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरहअटका कहीं जो आप का दिल भी मिरी तरह
वर्ना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश मेंया तो टूट कर रोया या ग़ज़ल-सराई की
घीसू ने आलू निकाल कर छीलते हुए कहा, “जा देख तो क्या हालत है, उसकी चुड़ैल का फसाद होगा और क्या। यहाँ तो ओझा भी एक रुपये माँगता है। किस के घर से आए।” माधव को अंदेशा था कि वो कोठरी में गया तो घीसू आलुओं का बड़ा हिस्सा साफ़...
इस क़दर रोया हूँ तेरी याद मेंआईने आँखों के धुँदले हो गए
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