aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "رویا"
मोहम्मद रफ़ी सौदा
1713 - 1781
शायर
रफ़ी रज़ा
born.1962
आतिश इंदौरी
born.1977
रूपा मेहता नग़मा
लेखक
रज़िया फ़सीह अहमद
born.1934
अशरफ़ रफ़ी
born.1940
रफ़ी सिरसीवी
1952 - 2019
सोनरूपा विशाल
मुहम्मद रफ़ी
रज़िया बट्ट
1924 - 2012
रज़िया सज्जाद ज़हीर
1918 - 1979
रफ़ीउद्दीन राज़
रज़िया हलीम जंग
born.1922
रफ़ीउद्दीन हाश्मी
रफ़ी बदायूनी
जानता हूँ एक ऐसे शख़्स को मैं भी 'मुनीर'ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं
बहुत रोया वो हम को याद कर केहमारी ज़िंदगी बरबाद कर के
रोया हूँ तो अपने दोस्तों मेंपर तुझ से तो हँस के ही मिला हूँ
मुस्कुराते हुए मिलता हूँ किसी से जो 'ज़फ़र'साफ़ पहचान लिया जाता हूँ रोया हुआ मैं
तग़ाफ़ुल क्लासिकी उर्दू शायरी के माशूक़ के आचरण का ख़ास हिस्सा है । वो आशिक़ के विरह की पीड़ा से परीचित होता है । वो आशिक़ की आहों और विलापों को सुनता है । लेकिन इन सब से अपनी बे-ख़बरी का दिखावा करता है । माशूक़ का ये आचरण आशिक़ के दुख और तकलीफ़ को और बढ़ाता है । आशिक़ अपने माशूक़ के तग़ाफ़ुल की शिकायत भी करता है । लेकिन माशूक़ पर इस का कोई असर नहीं होता । यहाँ प्रस्तुत शायरी में आशिक़-ओ-माशूक़ के इस आचरण के अलग-अलग रंगों को पढ़िए और उर्दू शायरी के इश्क़-रंग का आनंद लीजिए ।
वहम एक ज़हनी कैफ़ियत है और ख़याल-ओ-फ़िक्र का एक रवैया है जिसे यक़ीन की मुतज़ाद कैफ़ियत के तौर पर देखा जाता है। इन्सान मुसलसल ज़िंदगी के किसी न किसी मरहले में यक़ीन-ओ-वहम के दर्मियान फंसा होता है। ख़याल-ओ-फ़िक्र के ये वो इलाक़े हैं जिनसे वास्ता तो हम सब का है लेकिन हम उन्हें लफ़्ज़ की कोई सूरत नहीं दे पाते। ये शायरी पढ़िए और उन लफ़्ज़ों में बारीक ओ नामालूम से एहसासात की जलवागरी देखिए।
ग़ुरूर ज़िंदगी जीने का एक मनफ़ी रवव्या है। आदमी जब ख़ुद पसंदी में मुब्तिला हो जाता है तो उसे अपनी ज़ात के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। शायरी में जिस ग़ुरूर को कसरत से मौज़ू बनाया गया है वह महबूब का इख़्तियार-कर्दा ग़ुरूर है। महबूब अपने हुस्न, अपनी चमक दमक, अपने चाहे जाने और अपने चाहने वालों की कसरत पर ग़ुरूर करता है और अपने आशिक़ों को अपने इस रवय्ये से दुख पहुँचाता है। एक छोटा सा शेरी इन्तिख़ाब आप के लिए हाज़िर है।
रवय्याرویہ
behaviour, custom, manner
रूयाرویا
vision, dream
रोयाرویا
wept, cried
इक़बाल की तवील नज़्में
शायरी
Islam Aur Science
मोहम्मद रफ़ीउद्दीन
कुल्लियात-ए-सौदा
कुल्लियात
क़साइद-ए-सौदा
क़सीदा
Iqbal Ki Taweel Nazmein
नज़्म तन्क़ीद
Iran Mein Jadeed Farsi Adab Ke Pachas Saal
रज़िया अकबर
इतिहास
मैं रोना चाहता हूँ
फ़रहत एहसास
काव्य संग्रह
Shabbu Aur Wahshi
नॉवेल / उपन्यास
1985 Ka Iqbaliyati Adab Ek Jaiza
शायरी तन्क़ीद
अल्लामा इक़बाल: शख़्सियत और फन
शोध
Mirza Mohammad Rafi Sauda
ख़लीक़ अंजुम
Urdu Mein Natiya Shairi
सय्यद रफ़ीउद्दीन अशफ़ाक़
नात तन्क़ीद
डाक्टर नज़ीर अहमद
क़ाज़ी अफ़ज़ाल हुसैन
विनिबंध
Maasir Tanqidi Rawayye
अबुल कलाम क़ासमी
आलोचना
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरहअटका कहीं जो आप का दिल भी मिरी तरह
वर्ना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश मेंया तो टूट कर रोया या ग़ज़ल-सराई की
इस क़दर रोया हूँ तेरी याद मेंआईने आँखों के धुँदले हो गए
मुझ को बनना पड़ा शाइ'र कि मैं अदना ग़म-ए-दिलज़ब्त भी कर न सका फूट के रोया भी नहीं
तर्क-ए-तअल्लुक़ात पे रोया न तू न मैंलेकिन ये क्या कि चैन से सोया न तू न मैं
अपने हाल पे ख़ुद रोया हूँख़ुद ही अपना चाक सिया है
घबरा के पूछने लगे महबूब-ए-ज़ुल-जलालरोता है क्यूँ हुसैन ये क्या है तुम्हारा हाल
दुनिया के कच्चे रंगों का रोना रोयाफिर दुनिया पर अपना रंग जमाया हम ने
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