aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "سانپ"
आंग सान सू की
लेखक
सराग़र सानी
फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकतीकौन साँप रखता है उस के आशियाने में
वो ख़्वाब थे ही चँबेलियों से सो सब ने हाकिम की कर ली बै'अतफिर इक चँबेली की ओट में से जो साँप निकले तो लोग समझे
मैं जानता था कि ज़हरीला साँप बन बन करतिरा ख़ुलूस मिरी आस्तीं से निकलेगा
गिलहरी, साँप, बकरी और चीता साथ होते हैंसुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है
डस ही लेता है सब को इश्क़ कभीसाँप मौक़ा-शनास होता है
ऐसी पुस्तकों का इंतिख़ाब जिसमें हर युग की दिल्ली सांस ले रही है।
साँपسانپ
snake
सांप और सीढ़ियाँ
सलीम शहज़ाद
नॉवेल / उपन्यास
Haai Allah Saap
सईद लख़्त
कहानी
Saanp Ki Chori
फ़रीमन विलस कराफ़्टस
Bhole Kabootar Hoshiyar Sanp
तालिब शाहाबादी
अफ़साना
आस्तीन का सांप
मोहम्मद हुसैन हस्सान
अन्य
Le Saans Bhi Aahista
मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी
सांस के अजाइबात
आसी उल्दनी
तिब्ब-ए-यूनानी
Urdu Shairi Mein Sanit
हनीफ़ कैफ़ी
शायरी तन्क़ीद
Qaidi Sans Leta Hai
ज़ाहीदा हिना
कहानियाँ
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मोहम्मद अशरफ़
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क़ैसर शमीम
ग़ज़ल
खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़ेसीढ़ियाँ आती रहें साँप का ख़ाना न पड़े
थे पहले ही कई साँप आस्तीं मेंअब इक बिच्छू भी पाला जा रहा है
वो कपकपाते हुए होंट मेरे शाने परवो ख़्वाब साँप की मानिंद डस गया मुझ को
दिन भर की थकी मान्दी वो अभी अभी अपने बिस्तर पर लेटी थी और लेटते ही सो गई। म्युनिसिपल कमेटी का दारोग़ा सफ़ाई, जिसे वो सेठ जी के नाम से पुकारा करती थी, अभी अभी उसकी हड्डियाँ-पस्लियाँ झिंझोड़ कर शराब के नशे में चूर, घर वापस गया था... वो रात को यहीं पर ठहर जाता मगर उसे अपनी धर्मपत्नी का बहुत ख़याल था जो उससे बेहद प्रेम करती थी।वो रुपये जो उसने अपनी जिस्मानी मशक़्क़त के बदले उस दारोगा से वसूल किए थे, उसकी चुस्त और थूक भरी चोली के नीचे से ऊपर को उभरे हुए थे। कभी कभी सांस के उतार चढ़ाव से चांदी के ये सिक्के खनखनाने लगते और उसकी खनखनाहट उसके दिल की ग़ैर-आहंग धड़कनों में घुल मिल जाती। ऐसा मालूम होता कि उन सिक्कों की चांदी पिघल कर उसके दिल के ख़ून में टपक रही है!
سانپ دشمن کی نہ کیوں چھاتی پہ لہرا جائےلہر میں تا بہ فلک جس کا پھریرا جائے
सितंबर का अंजाम अक्तूबर के आग़ाज़ से बड़े गुलाबी अंदाज़ में बग़लगीर हो रहा था। ऐसा लगता था कि मौसम-ए-सरमा और गर्मा में सुलह-सफ़ाई हो रही है। नीले-नीले आसमान पर धुनकी हुई रुई ऐसे पतले-पतले और हल्के -हल्के बादल यूं तैरते थे जैसे अपने सफ़ेद बजरों में तफ़रीह कर रहे हैं।पहाड़ी मोर्चों में दोनों तरफ़ के सिपाही कई दिन से बड़ी कोफ़्त महसूस कर रहे थे कि कोई फ़ैसलाकुन बात क्यों वक़ूअ पज़ीर नहीं होती। उकता कर उनका जी चाहता था कि मौक़ा-बे-मौक़ा एक दूसरे को शेअर सुनाएँ। कोई न सुने तो ऐसे ही गुनगुनाते रहें।
सोया हुआ था शहर किसी साँप की तरहमैं देखता ही रह गया और चाँद ढल गया
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगेया'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
غلاف اس پہ بانات پر زر کے ٹانکشتابی سے نقاروں کو سینک سانک
साँप के काटे की लहरें हैं शब-ओ-रोज़ आतींकाकुल-ए-यार के सौदे ने अज़िय्यत दी है
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