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नज़्म
ऐ दिल-ए-बे-ख़बर
कब हवा-ए-सफ़र का इशारा मिले!
कब खुलें साहिलों पर सफ़ीनों के पर
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
शहर इल्म के दरवाज़े पर
अलीम जाने वो इल्म के कौन से सफ़ीनों का ना-ख़ुदा था
मुझे तो बस सिर्फ़ ये ख़बर है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
शेर
जिन सफ़ीनों ने कभी तोड़ा था मौजों का ग़ुरूर
उस जगह डूबे जहाँ दरिया में तुग़्यानी न थी
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
ये सइ-ए-ज़ब्त-ए-ग़म आँखों में आँसू रोकने वाले
सफ़ीनों में कहीं तूफ़ान भी मस्तूर होता है
आमिर उस्मानी
ग़ज़ल
कभी तूफ़ाँ की ज़द से भी सफ़ीने बच निकलते हैं
कभी सालिम सफ़ीनों को किनारे मार देते हैं