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शेर
जिसे समझा है तू ऐ संग-दिल मय-ख़्वारियाँ मेरी
तिरे ख़ल्वत-कदे में हैं वो शब-बेदारियाँ मेरी
सोज़ होशियारपूरी
ग़ज़ल
तुझे कुछ भी ख़ुदा का तर्स है ऐ संग-दिल तरसा
हमारा दिल बहुत तरसा अरे तरसा न अब तरसा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
संग-दिल यूँ भी मोहब्बत का सिला देते हैं
भूल कर अह्द-ए-वफ़ा रंज-ए-वफ़ा देते हैं
अब्दुल मजीद दर्द भोपाली
ग़ज़ल
कभी अब तुझ पे दिल ऐ संग-दिल आने नहीं देंगे
कि अब पत्थर से इस शीशे को टकराने नहीं देंगे
अमर अबदाबादी
ग़ज़ल
जिसे समझा है तू ऐ संग-दिल मय-ख़्वारियाँ मेरी
तिरे ख़ल्वत-कदे में हैं वो शब-बेदारियाँ मेरी