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ग़ज़ल
ख़राबी कुछ न पूछो मुलकत-ए-दिल की इमारत की
ग़मों ने आज-कल सुनियो वो आबादी ही ग़ारत की
मीर तक़ी मीर
शेर
वाँ से आया है जवाब-ए-ख़त कोई सुनियो तो ज़रा
मैं नहीं हूँ आप मैं मुझ से न समझा जाएगा
जुरअत क़लंदर बख़्श
कुल्लियात
जिस दिन कि उस के मुँह से बुर्क़ा उठेगा सुनियो
उस रोज़ से जहाँ में ख़ुर्शीद फिर न झाँका
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
टुक सुनियो ज़मज़मे मिरे दिल के कि बाग़ में
कब इस तरह का मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ है दूसरा