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हिंदी ग़ज़ल
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला
मेरे स्वागत को हर इक जेब से ख़ंजर निकला
गोपालदास नीरज
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ग़ज़ल
आने वाले कल का स्वागत कैसे होगा कौन करेगा
जलते हुए सूरज की किरनें सर पर होंगी तब सोचेंगे