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ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
कुल्लियात
अब दिल ख़िज़ाँ में रहता है जी की रुकन के साथ
जाना ही था हमें भी बहार-ए-चमन के साथ
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अब दिल ख़िज़ाँ में रहता है जी की रुकन के साथ
जाना ही था हमें भी बहार-ए-चमन के साथ