aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हर शख़्स यहाँ साहिब-ए-इदराक नहीं हैहर शख़्स को तुम साहिब-ए-इदराक न कहना
उन की मानिंद कोई साहब-ए-इदराक कहाँजो फ़रिश्ते नहीं समझे वो बशर समझे हैं
है ज़ौक़-ए-तजल्ली भी इसी ख़ाक में पिन्हाँग़ाफ़िल तू निरा साहिब-ए-इदराक नहीं है
अब ज़माने में रहे साहिब-ए-इदराक कहाँपेश हैं सामने फुसलाए हुए ये चेहरे
हम ख़ूब समझते हैं इशारों को तुम्हारेमाना कि कोई साहिब-ए-इदराक नहीं हम
साहिब-ए-इदराकصاحب ادراک
sensible person
साहब-ए-इदराकصاحب ادراک
man of senses
ज़माना कहता रहा जिस को उम्र भर अहमक़वो शख़्स साहब-ए-इदराक हो गया कैसे
ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राहकिसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक
इन को भी समझना है अभी साहब-ए-इदराकहोते हैं हक़ाएक़ भी तो अख़बार के आगे
इतना न हँसो साहब-ए-इदराक बहुत हैंआहिस्ता चलो लोग तह-ए-ख़ाक बहुत हैं
देख तो रंग तमन्नाओं की बेताबी केकल फ़ना है मगर ऐ साहब-ए-इदराक न कह
ता-अबद ज़ीस्त रहेगी यूँही बर्बाद-ए-ख़िरदगर जुनूँ साहिब-ए-इदराक नहीं हो सकता
ये इंक़िलाब-ए-वक़्त का ए'जाज़ देखिएअहल-ए-जुनूँ भी साहब-ए-इदराक हो गए
आते ही बज़्म-ए-वाज़ से चलते बने 'हफ़ीज़'दो हर्फ़ सुन के साहिब-ए-इदराक हो गए
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