aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "غلطی"
सड़क की दूसरी तरफ़ माल गोदाम था जो इस कोने से उस कोने तक फैला हुआ था। दाहिने हाथ को लोहे की छत के नीचे बड़ी बड़ी गांठें पड़ी रहती थीं और हर क़िस्म के माल अस्बाब के ढेर से लगे रहते थे। बाएं हाथ को खुला मैदान था जिसमें...
ये 1919 ई. की बात है भाई जान, जब रूल्ट ऐक्ट के ख़िलाफ़ सारे पंजाब में एजिटेशन हो रही थी। मैं अमृतसर की बात कर रहा हूँ। सर माईकल ओडवायर ने डिफ़ेंस आफ़ इंडिया रूल्ज़ के मातहत गांधी जी का दाख़िला पंजाब में बंद कर दिया था। वो इधर आ...
मगर बेगम जान से शादी कर के तो वो उन्हें कुल साज़-ओ-सामान के साथ ही घर में रख कर भूल गए और वो बेचारी दुबली पतली नाज़ुक सी बेगम तन्हाई के ग़म में घुलने लगी। न जाने उनकी ज़िंदगी कहाँ से शुरू होती है। वहाँ से जब वो पैदा होने...
पहले सब मिल कर एक ऐसे दुश्मन से लड़ते थे जिनको उन्होंने पेट और इनाम-ओ-इकराम की ख़ातिर अपना दुश्मन यक़ीन कर लिया था। अब वो ख़ुद दो हिस्सों में बट गए थे। पहले सब हिंदुस्तानी फ़ौजी कहलाते थे। अब एक पाकिस्तानी था और दूसरा हिंदुस्तानी। उधर हिंदुस्तान में मुसलमान हिंदुस्तानी...
हम को अक्सर ये ख़याल आता है उस को देख करये सितारा कैसे ग़लती से ज़मीं पर रह गया
मशहूर हो जाने की ख़्वाहिश हर किसी की होती है लेकिन इस ख़्वाहिश को ग़लत तरीक़ों से पूरा करने की कोशिश बहुत सी इन्सानी क़द्रों की पायमाली का बाइस बनती है। ये शेरी इन्तिख़ाब शोहरत की अच्छी बुरी सूरतों को सामने लाता है।
मिज़ाहिया शायरी बयकवक़्त कई डाइमेंशन रखती है, इस में हंसने हंसाने और ज़िंदगी की तल्ख़ियों को क़हक़हे में उड़ाने की सकत भी होती है और मज़ाह के पहलू में ज़िंदगी की ना-हमवारियों और इन्सानों के ग़लत रवय्यों पर तंज़ करने का मौक़ा भी। तंज़ और मिज़ाह के पैराए में एक तख़्लीक़-कार वो सब कह जाता है जिसके इज़हार की आम ज़िंदगी में तवक़्क़ो भी नहीं की जा सकती। ये शायरी पढ़िए और ज़िंदगी के इन दिल-चस्प इलाक़ों की सैर कीजिए।
तंज़-ओ-मिज़ाह की शायरी बयक-वक़्त कई डाईमेंशन रखती है, इस में हंसने हंसाने और ज़िंदगी की तलख़ियों को क़हक़हे में उड़ाने की सकत भी होती है और मिज़ाह के पहलू में ज़िंदगी की ना-हमवारियों और इंसानों के ग़लत रवय्यों पर तंज और मिज़ाह के पैराए में एक तख़लीक़-कार वो सब कह जाता है जिस के इज़हार की आम ज़िंदगी में तवक़्क़ो भी नहीं की जा सकती। ये शायरी पढ़िए और ज़िंदगी के उन दिल-चस्प इलाक़ों की सैर कीजिए।
ग़लतीغلطی
fault, mistake, error
''ग़लती''غلطی
A mistake, an error, inaccuracy, an oversight, a slip
Tabeer Ki Ghalati
मौलाना वहीदुद्दीन ख़ाँ
इस्लामियात
Tabeer Ki Ghalti
Tanqeed Qamoos-ul-Mashaheer
सय्यद अहमदुल्लाह क़ादरी
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Fikr Ki Ghalati
अतीक़ अहमद क़ासमी
Ek Ghalti Ka Izala
मीर्ज़ा ग़ुलाम अहमद क़ादियानी
Maulvi Ka Ghalat Mazhab
अल्लामा अल-मशरिकी
व्याख्यान
Gham Ghalat
शौकत थानवी
शायरी
Fikr Ki Ghalti
Deen Ki Siyasi Taabeer
Pahli Ghalati
ख़ुर्शीद आलम काकवी
Ghalat Fahmiyon Ka Azala
सय्यद हामिद अली
Dec 1966इस्लामियात
Ghalat-ul-Awam
मुनीर लखनवी
भाषा
ग़लत-उल-अवाम-ओ-मतरूक-उल-कलाम
शब्द-कोश
लेकिन तहसीलदार साहब और हेड-मास्टर साहब की नेक नियती यहीं तक महदूद न रही। अगर वह सिर्फ़ एक आ’म और मुहमल सा मश्विरा दे देते कि लड़के को लाहौर भेज दिया जाये तो बहुत ख़ूब था, लेकिन उन्होंने तो तफ़सीलात में दख़ल देना शुरु कर दिया और हॉस्टल की ज़िंदगी...
और लाजो एक पतली शहतूत की डाली की तरह, नाज़ुक सी देहाती लड़की थी। ज़्यादा धूप देखने की वजह से उसका रंग संवला चुका था। तबीअ’त में एक अजीब तरह की बेक़रारी थी। उसका इज़्तिराब शबनम के उस क़तरे की तरह था जो पारा करास के बड़े से पत्ते पर...
अब काम में उसका जी नहीं लगता था लेकिन इस बेदिली के होते हुए भी वो काहिली नहीं बरतता था। चुनांचे यही वजह है कि घर में कोई भी उसके अंदरूनी इंतिशार से वाक़िफ़ नहीं था। रज़िया थी सो वो दिन भर बाजा बजाने, नई नई फ़िल्मी तरज़ें सीखने और...
“दाऊ जी कुछ और पूछो।" दाऊ जी ने कहा, "बहुत बे-आबरु होकर तेरे कूचे से हम निकले। इसकी तरकीब-ए-नहवी करो।"...
उसका चेहरा जैसा कि मैं बयान कर चुका हूँ बेहद पीला था। उस पर उसकी नाक आँखों और मुँह के ख़ुतूत इस क़दर मद्धम थे जैसे किसी ने तस्वीर बनाई है और उसको पानी से धो डाला है। कभी कभी उसकी तरफ़ देखते देखते उसके होंट उभर से आते लेकिन...
त्रिलोचन नर्म हो जाता। दरअस्ल मोज़ील उसकी ज़बरदस्त कमज़ोरी बन गई थी। वो हर हालत में उसकी क़ुर्बत का ख़्वाहिशमंद था। इसमें कोई शक नहीं कि मोज़ील की वजह से उसकी अक्सर तौहीन होती थी। मामूली मामूली क्रिस्टान लौंडों के सामने जिनकी कोई हक़ीक़त ही नहीं थी, उसे ख़फ़ीफ़ होना...
मैंने उस गेंद को जिसे आप ज़िंदगी के नाम से पुकारते हैं, ख़ुद अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार कर काटा है। इसमें किसी का कोई क़ुसूर नहीं। वाक़िया ये है कि मैं इस खेल में लज़्ज़त महसूस कर रहा हूँ। लज़्ज़त... हाँ लज़्ज़त... मैंने अपनी ज़िंदगी की कई रातें हुस्न-फ़रोश...
उसको सिर्फ़ इतना मालूम था कि उसका बाप रहीम दाद इस जंग में काम आया है। उसकी लाश ख़ुद करीम दाद ने अपने कंधों पर उठाई थी और एक कुवें के पास गढ़ा खोद कर दफनाई थी। गांव में और भी कई वारदातें हुई थीं। सैंकड़ों जवान और बूढ़े क़त्ल...
जगदीश और उसके साथियों ने कृष्ण कुमार को कीचड़ भरे गढ़े में धक्का देकर गिरा दिया था। कीचड़ में बेचारा लतपत् है। लड़के छेड़ रहे हैं, जगदीश आगे बढ़ कर जब उसे उठाने लगता है तो उसका कोट फट जाता है। कृष्ण कुमार से अब बर्दाश्त नहीं हो सकता क्योंकि...
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