aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "قد"
क़द्र बिलग्रामी
1933 - 1884
शायर
हसनैन आक़िब
born.1971
क़द्र औरंगाबादी
died.1785
महताब क़द्र
लेखक
क़द तबा फ़िल मतबा अज़ीज़ी, दकन
पर्काशक
जहाँ क़दर चुग़ताई
एम, क़ियु. सलीम
मीम क़ाफ़ ख़ान
born.1940
मीम. क़ाफ़. सलीम
इदरीस कदर उफ़ुक़ सब्ज़वारी
सिकंदर बेग क़द्र काकोरवी
इमाम रब्बानी क़दस सिर्रह
एम क्यू खान
क़द्र हैदराबादी
कौकब क़द्र सज्जाद अली मिर्ज़ा
वो सर्व-क़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहींकि उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
सरिश्त-ए-इश्क़ ने उफ़्तादगी नहीं पाईतू कद्द-ए-सर्व न बीनी ओ साया-पैमाई
ये सर्दी ये गर्मी ये बारिश ये धूपये चेहरा ये क़द और ये रंग-रूप
भाप के बड़े बड़े बादल भी एक शोर के साथ पटड़ियों से उठते थे और आँख झपकने की देर में हवा के अंदर घुल मिल जाते थे। फिर कभी कभी जब वो गाड़ी के किसी डिब्बे को जिसे इंजन ने धक्का दे कर छोड़ दिया हो अकेले पटड़ियों पर चलता...
जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैंख़याबाँ ख़याबाँ इरम देखते हैं
सबसे प्रख्यात एवं प्रसिद्ध शायर. अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण कई साल कारावास में रहे।
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
क़दقد
stature, size, height, figure
क़द्दقد
height
R-Programming-ek Taaruf
सना रशीद
विज्ञान
Kulliyat-e-Hasan
मोहम्मद हसन रज़ा खान
कुल्लियात
Dhanak Par Qadam
अख़्तर रियाज़ुद्दीन
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Qaid
Abdullah Husain
नॉवेल / उपन्यास
Poore Qad Ka Aaina
ज़ुबैर रिज़वी
Damishq Ke Qaid Khane Mein
इनायतुल्लाह अलतमश
Shumara Number-008
ताज सईद
May 1975क़ंद-ए-पारसी
Rasheed Ahmad Siddiqi : Shakhsiyat Aur Adabi Qadr-o-Qeemat
अबुल कलाम क़ासमी
मज़ामीन / लेख
क़वाइद-उल-अरूज़
छंदशास्र
Lal Qila Ki Ek Jhalak
नासिर नज़ीर फ़िराक़ देहलवी
शिक्षाप्रद
Qaid-e-Farang
हसरत मोहानी
जीवनी
Azadi Ke Satrah Qadam
जवाहरलाल नेहरू
व्याख्यान
Kamyabi Sirf Chhe Qadam Par
दिनेश वोहरा
महिलाओं की रचनाएँ
Masla-e-Jabr-o-Qadr
सय्यद अबुल आला मोदूदी
इस्लामियात
Doosra Qadam
बानो कुदसिया
कहते हैं कि नौ अप्रैल की शाम को डाक्टर सत्यपाल और डाक्टर किचलू की जिला वतनी के अहकाम डिप्टी कमिशनर को मिल गए थे। वो उनकी तामील के लिए तैयार नहीं था। इसलिए कि उसके ख़याल के मुताबिक़ अमृतसर में किसी हैजानख़ेज बात का ख़तरा नहीं था। लोग पुरअम्न तरीक़े...
उश्शाक हूँ अब आलम-ए-बाला की मदद कादरपेश है मज़मून-ए-अलमदार के क़द का
“ए है बी, घास तो नहीं खा गई हो, कनीज़ फ़ातिमा की सास ने सुन लिया तो नाक चोटी काट कर हथेली पर रख देंगी। जवान बेटे की मय्यत उठते ही वो बहू के गिर्द कुंडल डाल कर बैठ गई। वो दिन और आज का दिन दहलीज़ से क़दम न...
दीवारों को छोटा करना मुश्किल हैअपने क़द को ऊँचा कर के देखा जाए
या जब से, जब वो मन्नतों मुरादों से हार गईं, चिल्ले बंधे और टोटके और रातों की वज़ीफ़ा ख़्वानी भी चित्त हो गई। कहीं पत्थर में जोंक लगती है। नवाब साहब अपनी जगह से टस से मस न हुए। फिर बेगम जान का दिल टूट गया और वो इल्म की...
शाम को जब वो अड्डे को लौटा। तो खिलाफ़-ए-मामूल उसे वहां अपनी जान-पहचान का कोई आदमी न मिल सका। ये देख कर उसके सीने में एक अजीब-ओ-ग़रीब तूफ़ान बरपा हो गया। आज वो एक बड़ी ख़बर अपने दोस्तों को सुनाने वाला था... बहुत बड़ी ख़बर और इस ख़बर को अपने...
जिस की गर्दन में है फंदा वही इंसान बड़ासूलियों से यहाँ पैमाइश-ए-क़द होती है
सिमट के रह गए आख़िर पहाड़ से क़द भीज़मीं से हर कोई ऊँचा दिखाई देता है
क़द से बढ़ जाए जो साया तो बुरा लगता हैअपना सूरज वो उठा लेता है हर शाम के बाद
क़द मेरा बढ़ाने का उसे काम मिला हैजो अपने ही पैरों पे खड़ा हो नहीं सकता
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