aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "مربوط"
मैं चाहता था कि एक बार आख़िरी बार उससे मिलूं और उसके मुँह पर अपने तमाम ग़ुस्से को थूक दूँ। यही सूरत थी जिससे मुझे कुछ सुकून हासिल हो सकता था। चुनांचे में शाम को बावली की तरफ़ गया। वो पगडंडी पर अनार की झाड़ियों के पीछे बैठी मेरा इंतिज़ार...
तेरे सब रंग हयूले के ये बे-जान नुक़ूशजैसे मरबूत ख़यालात के ताने-बाने
ऐसे वाक़ियात को जिनकी याद मेरे ज़ेहन में अब तक ताज़ा है, मैं आम तौर पर दुहराता रहता हूँ, ताकि उनकी तमाम शिद्दत बरक़रार रहे और इस ग़रज़ के लिए मैं कई तरीक़े इस्तेममाल करता रहता हूँ। बा’ज़ औक़ात मैं ये बीते हुए वाक़ियात अपने दोस्तों को सुना कर अपना...
कांट को अपनी ताबीरों पर इस क़दर एतमाद है कि उन्हें नफ़्सियात की भी रू से साबित करने की कोशिश नहीं करता, लेकिन दर-हक़ीक़त उसके नज़रियात अफ़लातून की ख़्याली ऐनियत Ideal Idealism से किसी दर्जा मुतास्सिर हैं, उसके इज़हार की ज़रूरत नहीं। बक़ौल कंथ बर्क, बस इस बात की ज़रूरत...
मैंने सलीम की नफ़्सियात समझने की बहुत कोशिश की है। मगर मुझे उसकी मुनक़लिब आदात के होते हुए कभी मालूम नहीं हो सका कि वो किन गहराईयों में ग़ोताज़न है और वो इस दुनिया में रह कर अपने मुस्तक़बिल के लिए क्या करना चाहता है जब कि अपने वालिद के...
रूमान के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। रूमान चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए रूमानी लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ रूमान बिखरा पड़ा है।
शायरी और साहित्य में भाषा आम तौर पर शब्द अपने सामने के अर्थ और सामान्य अवधारणा से अलग होता है । आसमान भी इसी तरह का एक शब्द है । उर्दू की क्लासिकी शायरी तक में आसमान एक रूपक के तौर पर मौजूद है जो अपने सामने के अर्थ और सामान्य अवधारणा से बिल्कुल अलग है । इश्क़ के संदर्भ में आसमान एक शक्तिशाली किरदार है जो तमाम तरह की मुश्किलें पैदा करता है । आसमान को इंसानों के भाग्य के रूपक के तौर पर भी उर्दू शायरी ने पेश किया है । प्रेमी के सामने हर तरह की मुश्किलें यही पैदा करता है । प्रेमी के हौसले को तोड़ने के लिए चालें चलता है । उस पर ज़ुल्म करता है । इसलिए उर्दू शायरी का प्रेमी आसमान की तरफ़ इस उम्मीद मे देखता है शायद वो मेहरबान हो जाए । अर्थों के इन संदर्भों को समझने के लिए चुनिंदा शायरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
क़ासिद क्लासिकी शायरी का एक मज़बूत किर्दार है और बहुत से नए और अनोखे मज़ामीन इसे मर्कज़ में रख कर बांधे गए हैं। वो आशिक़ का पैग़ाम ले कर माशूक़ के पास ख़त्म हो जाता है। इस तौर पर आशिक़ क़ासिद को अपने आप से ज़्यादा ख़ुश-नसीब तसव्वुर करता है कि इस बहाने उसे महबूब का दीदार और उस से हम-कलामी नसीब हो जाती है। क़ासिद कभी जलवा-ए-यार की शिद्दत से बच निकलता है और कभी ख़त के जवाब में उस की लाश आती है। ये और इस क़िस्म के बहुत से दिल-चस्प मज़ामीन शायरों ने बांधे है। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए और लुत्फ़ लीजिए।
मरबूतمربوط
bound, fastened together, con-sistent (as a book), concordant (ingrammar)
क्रमबद्ध, मुसल्सल, प्रसंगयुक्त, बासिल्सिला (गुत्फ्गू) ।।
Information Technology Se Marboot Masail-o-Ahkam
सय्यद बाक़र अरशद
विज्ञान
علت و معلول اور اسباب و نتائج کا عام طرح پر جو سلسلہ تسلیم کیا جاتا ہے، شاعر کی قوت تخئیل کا سلسلہ اس سے بالکل الگ ہے۔ وہ تمام اشیاء اپنے نقطہ خیال سے دیکھتا ہے اور یہ تمام چیزیں اس کو ایک سلسلہ میں مربوط نظر آتی ہیں،...
اس کو دُکھی دیکھ کر سعید کے ایک نامعلوم جذبے کو تسکین ضرورپہنچی تھی لیکن اس کے ساتھ ہی اس کے دل میں رحم بھی پیدا ہوا تھا۔ کسی عورت سے اس نے آج تک ہمدردی ظاہر نہیں کی تھی۔ وہ اس سے ہمدردی کا اظہار کرسکتا تھا۔ اس لیے...
मरबूत हैं तुझ से भी यही नाक्स-ओ-नाअहलउस बाग़ में हम ने गुल-ए-बे-ख़ार न पाया
उसने कई ला’नतें अपने आप पर भेजीं मगर ख़ातिर-ख़्वाह असर पैदा न हुआ। उसके क़दम आगे न बढ़ सके। नानक शाही ईंटों का ना हमवार फ़र्श उसके सामने लेटा रहा। गर्मियों के दिन थे। निस्फ़ रात गुज़रने पर भी हवा ठंडी नहीं हुई थी। बाज़ार में आमद-ओ-रफ़्त बहुत कम थी।...
मजनूं नज़र आती है लैला नज़र आता है शो'रा ने हमारे आपके अ'ज़ा-ओ-जवारेह के बारे में तशबीह इस्तिआरा या जुनून में जो कुछ कहा है भारत भभूत के आर्टिस्ट इसी क़िस्म की चीज़ हमारे आपके जिस्म पर बनाकर ग़ज़ल को नज़्म-ए-मुअ'र्रा कर दिखाएंगे, उस वक़्त आर्ट बराए आर्ट और आर्ट...
لیکن یہاں یہ مشکل ہے کہ ہر قسم کے شعر کے ساتھ مختلف طرح کی توقعات وابستہ ہو گئی ہیں اور قاری ان توقعات کی روشنی میں ہی ہر تخلیق کے ساتھ معاملہ کرتا ہے۔ احتشام صاحب مرحوم نے اپنی ایک یاس آلودغزل کو اسی لیے ’’بہ یاد ویت نام‘‘...
गुज़ाशतेम-ओ-गगुज़शीतेम-ओ-बूदनी हमा बूद शुदेम-ओ-शुद सुख़न-ए-मा फ़साना-ए-इतफ़ाल...
गोया कोई अनदेखी आँख उनको हमेशा देखती रहती थी इस तरह की अलामतों के बारे में ये कहना दुरुस्त नहीं है कि ये ग़ैर शऊरी या ख़ुदकार अवामिल के ज़रिए ही वुजूद में आ सकती हैं क्योंकि हक़ीक़त ये है कि नज़्म या नावल या पूरे कुल्लियात में पाए जानेवाले...
ہندوستان میں آریائی زبان کی تاریخ کے متعلق اکثر یہ خیال ظاہر کیا گیا ہے کہ آج تک ہندوستان کی اتنی مربوط اور مسلسل تاریخ کسی دوسرے ملک میں نہیں ملتی اور ہر دور میں اس کے ارتقا کی نشان دہی واضح مثالوں سے کی جاسکتی ہے۔ اس میں شک...
سامنے کی بات ہے کہ ہر تحریر کا ایک اُسلوب بھی ہوتا ہے جو مصنف کے فرق کے ساتھ بدلتا رہتا ہے۔ اگر تحریر آپ اپنی محرر ہے تو اُسلوب کو کس کے کھاتے میں ڈالا جائے گا؟ اسٹائل مصنف کے وجود پر گواہی دیتا ہے نہ کہ تحریر کے...
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