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तंज़-ओ-मज़ाह
“किसी माहिर-ए-नफ़सियात से मश्वरा कीजिए शायद वो कुछ...” “वो भी कर चुके हैं।” ...
कन्हैया लाल कपूर
ग़ज़ल
क्या मुनज्जिम से करें हम अपने मुस्तक़बिल की बात
हाल के बारे में हम को कौन सा मालूम है
शुजा ख़ावर
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नज़्म
जवाहर-लाल नेहरू
वो जो हमराज़ रहा हाज़िर-ओ-मुस्तक़बिल का
उस के ख़्वाबों की ख़ुशी रूह का ग़म ले के चलो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
वो मेरी पहली मोहब्बत थी
जो माज़ी थी मगर मेरा मुस्तक़बिल न बन पाई