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नज़्म
ख़ून फिर ख़ून है
लाख बैठे कोई छुप-छुप के कमीं-गाहों में
ख़ून ख़ुद देता है जल्लादों के मस्कन का सुराग़
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
ये दिल ये आसेब की नगरी मस्कन सोचूँ वहमों का
सोच रहा हूँ इस नगरी में तू कब से मेहमान हुआ
मोहसिन नक़वी
नज़्म
जश्न-ए-ग़ालिब
तुर्बत है कहाँ उस की मस्कन था कहाँ उस का
अब अपने सुख़न-परवर ज़ेहनों में सवाल आया
साहिर लुधियानवी
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नज़्म
ऐ इश्क़ कहीं ले चल
इक मस्कन-ए-अशरार-ओ-आज़ार है ये दुनिया
इक मक़्तल-ए-अहरार-ओ-अबरार है ये दुनिया
अख़्तर शीरानी
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
नज़्म
हिमाला
ऐ हिमाला दास्ताँ उस वक़्त की कोई सुना
मस्कन-ए-आबा-ए-इंसाँ जब बना दामन तिरा