aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "مقدم"
मुज़दम ख़ान
born.1990
शायर
बाबा मोक़द्दम
1875 - 1946
लेखक
मुक़द्दस मालिक
born.1991
मुज़्तर आज़मी
born.1934
मुक़ीम एहसान कलीम
शहीन मुक़द्दम सफ़यारी
संपादक
फ़तिमा मक़दमपुर
दुकतर शहीन मुक़द्दम सिफ़यारी
मुक़द्दर हमीद
मोक़ीम असर बयावी
ड़ा मोहम्मग मुकीम जामई
मोहम्मद मुक़ीम
मोहम्मद मोक़ीम मोक़ीमी बेजापुरी
मुक़ीमुद्दीन रशीद
पर्काशक
मियाँ मरदम शनास
जस से रौशन-तर हुई चश्म-ए-जहाँ-बीन-ए-ख़लीलऔर वो पानी के चश्मे पर मक़ाम-ए-कारवाँ
اب باپ کی جگہ شہ عالی مقام ہیںصدقے نہ کس طرح ہوں کہ ہم سب غلام ہیں
दूसरे दिन झूरी का साला जिसका नाम गया था, झूरी के घर आया और बैलों को दुबारा ले गया। अब के उसने गाड़ी में जोता। शाम को घर पहुँच कर गया ने दोनों को मोटी रस्सियों से बाँधा और फिर वही ख़ुश्क भूसा डाल दिया। हीरा और मोती इस बरताव...
جسے چاہے جنت میں دیوے مقامجسے چاہے دوزخ میں رکھے مدام
میں گھر میں تڑپتی ہوں وہ ہیں صبح سے باہروہ کیا کریں برگشتہ ہے اپنا ہی مقدر
अहमद फ़राज़ पिछली सदी के प्रख्यात शायरों में शुमार किए जाते हैं। अपने समकालीन में बेहद सादा और अद्वितीय शैली की वजह से उनकी शायरी ख़ास अहमियत की हामिल है। रेख़्ता फ़राज़ के 20 लोकप्रिय और सबसे ज़्यादा पढ़े गए शेर पेश कर रहा है जिसने पाठकों पर जादू ही नहीं किया बल्कि उनके दिलों को मोह लिया । इन शेरों का चुनाव बहुत आसान नहीं था। हम जानते हैं कि अब भी फ़राज़ के बहुत से लोकप्रिय शेर इस सूची में नहीं हैं। इस सिलसिले में आपकी राय का स्वागत है। अगर हमारे संपादक मंडल को आप का भेजा हुआ शेर पसंद आता है तो हम इसको नई सूची में शामिल करेंगे।उम्मीद है कि आपको हमारी ये कोशिश पसंद आई होगी और आप इस सूची को संवारने और आरास्ता करने में हमारी मदद करेंगें ।
मीर तक़ी मीर 18 वीं सदी के आधुनिक उर्दू शायर थे। उर्दू भाषा को बनाने और सजाने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही है। ख़ुदा-ए-सुख़न के रूप में प्रख्यात, मीर ने अपने बारे में कहा था 'मीर' दरिया है सुने शेर ज़बानी उसकी अल्लाह अल्लाह रे तबीअत की रवानी उसकी। रेख़्ता उनके के 20 लोकप्रिय और सबसे ज़्यादा पढ़े गए शेर आपके सामने पेश कर रहा है। इन शेरों का चुनाव आसान नहीं था। हम जानते हैं कि अब भी मीर के कई अच्छे शेर इस सूची में नहीं हैं। इस सिलसिले में नीचे दिए गए टिप्पणी बॉक्स में आपके पसंदीदा शेर का स्वागत है। अगर हमारे संपादक मंडल को आप का भेजा हुआ शेर पसंद आता है तो हम इसको नई सूची में शामिल करेंगे।उम्मीद है कि आपको हमारी ये कोशिश पसंद आई होगी और आप इस सूची को संवारने और आरास्ता करने में हमारी मदद करेंगें ।
उर्पदू में र्तिबंधित पुस्तकों का चयन
मक़्दमمَقدَم
स्वागत, आगमन, कहीं पधारना
Muqaddama-e-Sher-o-Shairi
अल्ताफ़ हुसैन हाली
आलोचना
शायरी तन्क़ीद
Mere Mashhoor Muqadame
एस.एम.जफ़र
संविधान / आईन
Muqaddama-e-Tareekh-e-Zaban-e-Urdu
मसऊद हुसैन ख़ां
भाषा विज्ञान
Muqaddama Tareekh Zaban-e-Urdu
इतिहास
Muqaddama-e-Tareekh-e-Ibn-e-Khaldun
अब्दुर्रहमान इब्न-ए-ख़लदून
साहित्य का इतिहास
Muqaddama Tareekh-e-Zaban-e-Urdu
Sharh Shikwa Jawab-e-Shikwa
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
Muqaddama-e-Kalam-e-Aatish
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
Pur Asrar Muqaddama
फ्रांज़ काफ़्का
नॉवेल / उपन्यास
Muqaddama Ibn-e-Khaldoon
इसके अलावा और बहुत सी बातें उस ख़त में थीं जो एक बहन अपनी बहन को लिख सकती है। हामिदा ने ये पहला ख़त पढ़ा और बहुत रोई। उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसका हर लफ़्ज़ एक हथौड़ा है जो उसके दिल पर ज़र्ब लगा रहा है...
अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म हैऐ कि तेरी ख़ुशी मुक़द्दम है
मैं ने ज़ोर का क़हक़हा लगा कर कहा, “ओ हो! लाला जी याद नहीं। मैं ने आपको गुड-मॉर्निंग कहा था। मैं तो पहले ही से जाग रहा था।” बोले, “वो तो ठीक है लेकिन बाद में... उसके बाद... कोई सात बजे के क़रीब मैंने आप से तारीख़ पूछी थी। आप...
इसके बाद मिर्ज़ा साहब की शान में एक क़सीदा शुरू होजाता है। बीच में मेरी जानिब गुरेज़। कभी लंबी बहर में कभी छोटी बहर में। एक दिन जब ये वाक़या पेश आया तो मैंने मुसम्मम इरादा कर लिया कि इस मिर्ज़ा कम्बख़्त को कभी पास न फटकने दूँगा। आख़िर घर...
ख़ैर-मक़्दम को तेरे दियाजगमगाता रहा रात भर
नहीं है साया कि सुन कर नवेद-ए-मक़दम-ए-यारगए हैं चंद क़दम पेश-तर दर-ओ-दीवार
ख़ैर-मक़्दम किया हवादिस नेज़िंदगी में जिधर गए हैं हम
عمری و رفتنِ عمر آواز پا ندارد یعنی معشوق جو گودی سے نکل کر چلا گیا تو مجھ کو خبر نہیں ہوئی، کیونکہ معشوق عاشق کی زندگی ہے اور زندگی کے جانے کے وقت جانے کی آہٹ نہیں معلوم ہوتی، اس دلیل کے دو مقدمے ہیں۔ ۱۔ ’’معشوق عاشق کی...
पंचायत की सदा किस के हक़ में उट्ठेगी उसके मुताल्लिक़ शेख़ जुम्मन को अंदेशा नहीं था। क़ुर्ब-ओ-जवार, हाँ ऐसा कौन था जो उनका शर्मिंदा-ए-मिन्नत न हो? कौन था जो उनकी दुश्मनी को हक़ीर समझे? किस में इतनी जुर्अत थी जो उनके सामने खड़ा हो सके। आसमान के फ़रिश्ते तो पंचायत...
उसकी बेटी, मालूम नहीं वो उसकी बेटी थी या नहीं, शबाब का बड़ा दिलकश नमूना थी। उसके ख़द-ओ-ख़ाल में ऐसी कोई चीज़ नहीं थी जिससे ये नतीजा अख़्ज़ किया जा सके कि वो फ़ाहिशा है। लेकिन ये हक़ीक़त है कि उसकी माँ उससे पेशा कराती थी और ख़ूब दौलत कमा...
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