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नज़्म
खंडर
पस-ए-चिलमन किसी रुख़्सार की ताबिश नहीं होती
पस-ए-दीवार लहराते नहीं अब रेशमी आँचल
क़ैसर-उल जाफ़री
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ग़ज़ल
पस-ए-चिलमन हैं तो चिलमन को उठा ही दीजे
इस तकल्लुफ़ पे नुमाइश का गुमाँ होता है
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
देखिए उस बुत-ए-काफ़िर के सताने की अदा
ख़्वाब में दिखता है तो भी पस-ए-चिलमन-चिलमन
रेशमा नाहीद रेशम
ग़ज़ल
दिल-ए-हज़ीं पे चमन की फ़ज़ा ने तंज़ किया
मज़ाक़ उड़ाया गुलों ने सबा ने तंज़ किया
ज़फ़र मुरादाबादी
शेर
नाज़ है गुल को नज़ाकत पे चमन में ऐ 'ज़ौक़'
उस ने देखे ही नहीं नाज़-ओ-नज़ाकत वाले
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
वो चाँद जो चिलमन में छुपा है भी नहीं भी
कुछ उस ने सितारों से कहा है भी नहीं भी