aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پشاور"
सेंडीकेट राइटर्ज़ ,पेशावर
पर्काशक
हमीदिया प्रेस, पेशावर
शोबा-ए-उर्दू फ़ारसी, पेशावर यूनीवर्सिटी
मौतमरुल मुअल्लिफ़ीन, पेशावर
मफ़्क़ूर रिसर्च एंड डेवलोपमेन्ट सेण्टर, पेशावर
इदारा उख़ुव्वत-ओ-मसावात, पेशावर
मकतबा-ए-अरज़ंग, पेशावर
अंजुमन इशाअत-ए-इस्लाम, पेशावर
मतबुआ शाहीन प्रेस, पेशावर
अफ़ज़ल एलेक्ट्रिक प्रेस, पेशावर
चिश्ती आर्ट सेंटर, पेशावर
तरसील इंटरप्राइज़ेज़ पेशावर, पाकिस्तान
यूसफ़ी पब्लिशंग हाउस, पेशावर
मन्ज़ूरे-आ़म कुतुब ख़ाना, पेशावर
सुलैमान अकेडमी, पेशावर
“ये पूछने की बात है कल किसी वकील से दरयाफ़्त करेंगे।” उन मारवाड़ियों की बातचीत उस्ताद मंगू के दिल में नाक़ाबिल-ए-बयान ख़ुशी पैदा कर रही थी। वो अपने घोड़े को हमेशा गालियां देता था और चाबुक से बहुत बुरी तरह पीटा करता था। मगर उस रोज़ वो बार-बार पीछे मुड़...
जब मैं पेशावर से चली, तो मैंने छकाछक इत्मीनान का साँस लिया। मेरे डिब्बों में ज़्यादा-तर हिंदू लोग बैठे हुए थे। ये लोग पेशावर से होते हुए मरदान से, कोहाट से, चारसद्दा से, ख़ैबर से, लंडी कोतल से, बन्नूँ, नौशेरा से, मानसहरा से आए थे और पाकिस्तान में जान-ओ-माल को...
पूना में रेसों का मौसम शुरू होने वाला था कि पेशावर से अ’ज़ीज़ ने लिखा कि मैं अपनी एक जान पहचान की औरत जानकी को तुम्हारे पास भेज रहा हूँ, उसको या तो पूना में या बंबई में किसी फ़िल्म कंपनी में मुलाज़मत करा दो। तुम्हारी वाक़फ़ियत काफ़ी है, उम्मीद...
वो इंटर क्लास के ज़नाना डिब्बे से निकली उस के हाथ में छोटा सा अटैची केस था। जावेद पेशावर से उसे देखता चला आ रहा था। रावलपिंडी के स्टेशन पर गाड़ी काफ़ी देर ठहरी तो वो साथ वाले ज़नाना डिब्बे के पास से कई मर्तबा गुज़रा। लड़की हसीन थी जावेद...
“किस से... किस उल्लु के पट्ठे से... एक फेरी वाले बज़ार से जिसको न तो ग़ालिब के शेर याद थे न कृश्न चन्दर के अफ़साने। जो आपके मुक़ाबले में लैवेंडर लगे रूमाल से नहीं बल्कि अपने मैले तहमद से नाक साफ़ करता था।” प्रकाश हंसा, “चौधरी साहब क़िबला, मुझे याद...
पेशावरپِشاوَر
पाकिस्तान का एक प्रसिद्ध नगर
Peshawar Se Quetta Tak
एम ज़मान खोखर
Khursheed-e-Khawar
मोहम्मद सुल्तान
January: Shumara Number-001
सय्यदा हिना
Jan 1990इब्लाग़
Shumara Number-003
राहत लोदी
दास्तान, पेशावर
Peshawar Ki Kahaniyan Aur Nazeer Fatehpuri
मनाज़िर आशिक़ हरगानवी
अफ़साना
Matbuat Kutubkhana Rahmania
अननोन ऑथर
Tazkira-e-Huffaz-e-Peshawar
फ़क़ीर मोहम्मद आमीर शाह क़ादरी गीलानी
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Shumara Number-001
Jan 1997इब्लाग़
Oct 1989इब्लाग़
Shumara Number-004
Oct 1996इब्लाग़
Shumara Number-002
Apr 1999इब्लाग़
April
इब्लाग़
Shumara Number-007
सय्यद अब्दुल्लाह
Jan 1988मशअल, पेशावर
Shumara Number-010
Apr 1988मशअल, पेशावर
لاہور تک پہنچنے کے کئی راستے ہیں۔ لیکن دو ان میں سے بہت مشہور ہیں۔ ایک پشاور سے آتا ہے اور دوسرا دلی سے۔ وسط ایشیا کے حملہ آور پشاور کے رستےاور یو۔ پی کے حملہ آور دہلی کے رستے وارد ہوتے ہیں۔ اول الذکر اہل سیف کہلاتے ہیں اور...
कौन सा शहर था, इसके मुतअल्लिक़ जहां तक में समझता हूँ, आपको मालूम करने और मुझे बताने की कोई ज़रूरत नहीं। बस इतना ही कह देना काफ़ी है कि वो जगह जो इस कहानी से मुतअल्लिक़ है, पेशावर के मुज़ाफ़ात में थी, सरहद के क़रीब। और जहां वो औरत थी,...
मैंने उनसे पूछा, “उस लड़की का रद्द-ए-अमल क्या था?” शाह साहब ने जवाब दिया, “उसने नाक-भौं चढ़ा कर कहा... ये फूल हैं? इनमें न तो ख़ुश्बू है न बदबू... बहरहाल, उसने वो फूल सूंघे... चंद चीज़ें खरीदीं और चली गई।...
फ़ौरन दोनों को हस्पताल दाख़िल कराया गया। जहां से वो ठीक-ठाक होकर वापस आगए मगर अभी पंद्रह रोज़ बमुश्किल गुज़रे होंगे कि फिर दोनों ने सोनोरल से शगल फ़र्मा लिया। मालूम नहीं वो हस्पताल पहुंचाए गए या घर में उनका ईलाज हुआ, बहरहाल बच गए। इसके बाद ग़ालिबन एक बरस...
हमने कहा, “लाहौल वला क़ुव! उस बुज़ुर्ग की तमाम करदा-ओ-नाकरदा ख़ताएँ तुम्हें सिर्फ़ इस बिना पर माफ़ कर देनी चाहिऐं कि तुम्हारी तरह वो भी चाय के रसिया थे। क्या नाम था उनकी पसंदीदा चाय का? अच्छा सा नाम था, हाँ याद आया। व्हाइट जैसमीन! यासमीन सफ़ेद!”शगुफ़्ता हुए। फ़रमाया, “मौलाना...
اٹھ کر کھڑے ہوگئے۔ پھر رکوع میں چلے گئے اور تین مرتبہ سبحان اللہ! سبحان اللہ! سبحان اللہ! تجوید سے ادا کرنے کے بعد فرمایا، ’’آپ اچھا ڈائلاگ بول رہے ہیں۔ ایسا ڈائلاگ میں نے ۱۹۲۵ میں پشاور میں سنا تھا۔ ایک تھیٹریکل کمپنی آئی تھی۔ ہیروئن کا پارٹ ایک...
मैंने देखा कि जिया लाल घोड़े पर सवार सूरज कुमारी को गजरा पेश कर रहा है और वो पेशावर की हरी दुपट्टे वाली जवान औरत अ’जब अंदाज़ से मुस्कुरा रही है। मैंने जियालाल को मुतनब्बा करते हुए कहा, “जियालाल! तुम्हारा नस्ब-उल-ऐ’न औरत से कहीं बुलंद है... औरत एक एलुजन है...
طبیعت افسانے کی طرف مائل نہیں ہوتی تھی۔ اس صنف ادب کو میں بہت سنگین سمجھتا ہوں۔ اس لئے افسانہ لکھنے سے گریز کرتا تھا، لیکن انہی دنوں میرے عزیز دوست احمد ندیم قاسمی جو غالباً اوٹ پٹانگ چیزیں لکھ لکھ کر تنگ آ گئے تھے، ریڈیو پاکستان، پشاور سے...
آج کل بعض دوستوں نے پنجاب میں اردو اور دکن میں اردو لکھا ہے اورایک عزیز نے گجرات میں اردو لکھنے کا فیصلہ کیا ہے۔ اس لئے ضرورت تھی کہ غریب ہندوستان میں اردو کی داستان بھی کچھ سنائی جائے۔ خدا کے فضل سے اس میدان میں صوبہ متحدہ پنجاب...
اس موضوع پر ترقی پسند ادیبوں نے جو کچھ لکھا، اس میں سب سے زیادہ بلند درجہ کرشن چندر کی کہانیوں کو حاصل ہے جن میں میرے نزدیک سب سے اچھی کہانی ’’پشاور ایکسپریس‘‘ ہے۔ احمدعباس 36، کی کہانی ’’جنتا‘‘ اور عصمت کی کہانی ’’جڑیں‘‘ بھی اس سلسلے کی اہم...
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