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ग़ज़ल
हम ठहरे आवारा पंछी सैर गगन की करते हैं
जान के हम को क्या करना है कौन है कितने पानी में
विलास पंडित मुसाफ़िर
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ग़ज़ल
इतना गहरा रंग कहाँ था रात के मैले आँचल का
ये किस ने रो रो के गगन में अपना काजल घोल दिया
शकेब जलाली
गीत
आज नहीं वो रैन सजन तुम सो जाओ
फीकी पड़ गई चाँद की ज्योति धुँदले पड़ गए दीप गगन के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साल-ए-नौ मुबारक
गुलों की तरह गुलिस्ताँ में निखर लें
बनें हम भी सूरज गगन में उभर लें