aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "گھنٹہ"
“मगर वो आदमी ख़ुदाबख़्श जो तुम्हारे साथ रहता है ज़रूर उल्लु का पट्ठा है।” “क्यों?”...
रब्बो को घर का और कोई काम न था बस वो सारे वक़्त उनके छप्पर खट पर चढ़ी कभी पैर, कभी सर और कभी जिस्म के दूसरे हिस्से को दबाया करती थी। कभी तो मेरा दिल हौल उठता था जब देखो रब्बो कुछ न कुछ दबा रही है, या मालिश...
जबरा शायद ये ख़याल कर रहा था कि बहिश्त यही है और हल्कू की रूह इतनी पाक थी कि उसे कुत्ते से बिल्कुल नफ़रत न थी। वो अपनी ग़रीबी से परेशान था, जिसकी वज्ह से वो इस हालत को पहुँच गया था। ऐसी अनोखी दोस्ती ने उसकी रूह के सब...
इस बस्ती के रहने वालों की सरपरस्ती और उनके मुरब्बियाना सुलूक की वज्ह से इसी तरह दूसरे तीसरे रोज़ कोई न कोई टट-पुंजिया दुकानदार कोई बज़्ज़ाज़, कोई पंसारी, कोई नेचाबंद, कोई नान-बाई मंदे की वज्ह से या शह्र के बढ़ते हुए किराए से घबरा कर उस बस्ती में आ पनाह...
घटा शायरी
घंटाگھنٹہ
hour, clock
Peetal Ka Ghanta
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
अफ़साना
Aadhe Ghante Ka Khuda
कृष्ण चंदर
पाठ्य पुस्तक
23 Ghante Ka Shahar
अहमद यूसुफ़
30 Ghante
जेम्स हेडले चेस
क़ाज़ी अब्दुल सत्तार
नॉवेल / उपन्यास
सावन की घटा
फ़िल्मी-नग़्मे
Nanhi Munni Si Ghanti
रिज़वाना ख़ान
कहानियाँ
Telephone Ki Ghanti
सय्यद जुनैद अख़लाक़
Jadu Ki Ghanti
नूर जहाँ सिद्दीक़ी
महिलाओं की रचनाएँ
Kali Ghata
गुलशन नन्दा
Chaubees Ghante
अननोन ऑथर
Jiski Azmat Mein Ghante Bajte Hain
कलीम उर्फ़ी
काली घटा
Panch Ghante Ka Qaidi
मुंशी फ़ज़लुद्दीन
Do Ghante Ki Mohabbat
अज़ीम अंसारी
सीढ़ियां चढ़ते वक़्त मेरे थके हुए आ’ज़ा सुकून बख़्श नींद की क़ुरबत महसूस कर के और भी ढीले होगए, और जब मुझे नाउम्मीदी का सामना करना पड़ा तो मुज़्महिल होगए। देर तक चोबी सीढ़ी के एक ज़ीने पर ज़ानूओं में दबाये अ’ज़ीज़ साहब का इंतिज़ार करता रहा मगर वो न...
ये किताबें कुछ ऐसी दिलचस्प थीं कि मैं रात रात भर अपने बिस्तर में दुबुक कर उन्हें पढ़ा करता और सुब्ह देर तक सोया रहता, अम्माँ मेरे इस रवैय्ये से सख़्त नालाँ थीं, अब्बा जी को मेरी सेहत बर्बाद होने का ख़तरा लाहक़ था लेकिन मैंने उनको बता दिया था...
दाया ने इस हुक्म की तामील ज़रूरी न समझी। बेगम साहिबा का ग़ुस्सा फ़िरौ करने की इससे ज़्यादा कारगर कोई तदबीर ज़ेह्न में न आई। उसने नसीर को इशारे से अपनी तरफ़ बुलाया। वो दोनों हाथ फैलाए लड़खड़ाता हुआ उसकी तरफ़ चला। दाया ने उसे गोद में उठा लिया। और...
इसलिए कि मैं सुबह उसकी ग़लाज़त पसंदी पर एक तवील लेक्चर दे चुका था। दास्तान कितनी तवील होती जा रही है। मगर मुझे मालूम है कि आप इसे ग़ौर से सुन रहे हैं... हाँ, हाँ आप सिगरेट सुलगा सकते हैं। मेरे गले में आज खांसी के आसार महसूस नहीं होते।...
अपनी बहुओं को इस ख़ूबसूरत आँगन से महरूम कर दिया है, जहाँ वो कल तक सुहाग की रानियाँ बनी बैठी थीं। अपनी अलबेली कुँवारियों को, जो अंगूर की बेल की तरह तेरी छाती से लिपट रही थीं, झिंझोड़ कर अलग कर दिया है। किस लिए आज ये देस बिदेस हो...
हम वफ़ादार नहीं तू भी तो दिलदार नहीं! लिहाज़ा हम तफ़सीलात से एह्तिराज़ करेंगे। हालाँकि दिल ज़रूर चाहता है कि ज़रा तफ़सील के साथ मिनजुम्ला दीगर मुश्किलात के इस सरासीमगी को बयान करें जो उस वक़्त महसूस होती है जब हमसे अज़ रूए हिसाब ये दरयाफ़्त करने को कहा जाये...
“जी हाँ, बल्कि इससे भी कुछ ज़्यादा, उसको इस बात का ग़म था कि अगर वो कोई मंज़र, कोई मर्द, कोई औरत सिर्फ़ एक नज़र देख ले तो उसे मिन-ओ-अ’न अपने अलफ़ाज़ में बयान कर सकता है जो कभी ग़लत नहीं होंगे और इसमें कोई शक नहीं कि उसका अंदाज़ा...
वो उकड़ूं बैठ कर हाथों के बल खिसकती हुई आँगन में आईं। मगर वाय क़िस्मत इश्तियाक़ ने अपनी पुरानी आदत के मुताबिक़ वक़्त का ग़लत अंदाज़ा किया था, मेहमानों की जमात अभी बैठी हुई थी। कोई खाकर उंगलियां चाटता था और कनखियों से देखता था कि और लोग भी खा...
एक जगह उसने अपनी महबूबा का हाथ अपने हाथ में लेकर मोहब्बत का इज़हार करना था। ख़ुदा की क़सम उसने हीरोइन का हाथ कुछ इस तरह अपने हाथ में लिया जैसे कुत्ते का पंजा पकड़ा जाता है। मैं उससे कई बार कह चुका हूँ ऐक्टर बनने का ख़याल अपने दिमाग़...
ग़रीब लीला इस बीमारी से जांबर न हो सकी। लाला जी को उसकी वफ़ात का बेहद रुहानी सद्मा हुआ। दोस्तों ने ता’ज़ियत के तार भेजे कई दिन ता’ज़ियत करने वालों का ताँता बंधा रहा। एक रोज़ाना अख़बार ने मरने वाली की क़सीदा ख्वानी करते हुए उसकी दिमाग़ी और अख़लाक़ी ख़ूबियों...
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