aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ہولے"
अडोल्फ़ होल्म
1830 - 1900
लेखक
सेवक उदय सिंह
ठाकुर अदय सिंह
उदय सरन अरमान अदीबी
डेनिस हीले
अलीगढ़ ओल्ड बॉयज एसोसिएशन, पाकिस्तान
पर्काशक
कुंवर उदय सिंह
चिराग प्रकाशन, उदयपुर
ए.एम.यू. ओल्ड ब्वायज़ एसोसिएशन, भोपाल
दि होली क़ुरान पब्लिशिंग हाउस, लिबनान
सिब्तैन होलीडेज़ प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली
अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी औलड बोयज़ एसोसिएशन दिल्ली पाकिस्तान
उदय सिंह शाइक़
1895 - 1987
सुल्तान सलीम प्रथम
1470 - 1520
शायर
जैसे सहराओं में हौले से चले बाद-ए-नसीमजैसे बीमार को बे-वज्ह क़रार आ जाए
मेरी और उन आँखों की मुलाक़ात एक हस्पताल में हुई। मैं उस हस्पताल का नाम आपको बताना नहीं चाहता, इसलिए कि इससे मेरे इस अफ़साने को कोई फ़ायदा नहीं पहुंचेगा। बस आप यही समझ लीजिए कि एक हस्पताल था, जिसमें मेरा एक अज़ीज़ ऑप्रेशन कराने के बाद अपनी ज़िंदगी के...
और मैंफिर हौले से उठ कर
मिर्ज़ा ग़ालिब अपने दोस्त हातिम अली मेहर के नाम एक ख़त में लिखते हैं, “मुग़ल बच्चे भी अजीब होते हैं कि जिस पर मरते हैं उसको मार रखते हैं, मैंने भी अपनी जवानी में एक सितम पेशा डोमनी को मार रखा था।”...
अप्रैल का महीना था। बादाम की डालियां फूलों से लद गई थीं और हवा में बर्फ़ीली ख़ुनकी के बावजूद बहार की लताफ़त आ गई थी। बुलंद-ओ-बाला तंगों के नीचे मख़मलीं दूब पर कहीं कहीं बर्फ़ के टुकड़े सपीद फूलों की तरह खिले हुए नज़र आ रहे थे। अगले माह तक...
कई दशक बीत गए लेकिन भारतीय गायकी के महानायक मोहम्मद रफी आज भी अपनी आवाज़ के जादू से सभी के दिलों पर राज कर रहे हैं। उनके रूमानी और भक्ति गीतों की गूँज आज भी सुनाई देती है। यहाँ हम उन मशहूर उर्दू शायरों की ग़ज़लें लेकर आए हैं, जिन्हें मुहम्मद रफ़ी ने गाया था। उन्होंने उन ग़ज़लों की ख़ूसूरती में वो जादू भर दिया है जो सुनने वालों को देर तक मंत्रमुग्ध रखता है।
मंशी नवल किशोर ने 1857 के गदर के बाद भारत की संस्कृति और साहित्यिक धरोहर को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रेस ने 1858 से 1950 तक धर्म, इतिहास, साहित्य, विज्ञान और दर्शन पर लगभग छह हजार किताबें प्रकाशित की। रेख़ता पर मंशी नवल किशोर प्रेस की किताबों का एक क़ीमती संग्रह उपलब्ध है।
शायरी में महबूब माँ भी है। माँ से मोहब्बत का ये पाक जज़्बा जितने पुर-असर तरीक़े से ग़ज़लों में बरता गया इतना किसी और सिन्फ़ में नहीं। हम ऐसे कुछ मुंतख़ब अशआर आप तक पहुँचा रहे हैं जो माँ को मौज़ू बनाते हैं। माँ के प्यार, उस की मोहब्बत और शफ़क़त को और अपने बच्चों के लिए उस प्यार को वाज़ेह करते हैं। ये अशआर जज़्बे की जिस शिद्दत और एहसास की जिस गहराई से कहे गए हैं इस से मुतअस्सिर हुए बग़ैर आप नहीं रह सकते। इन अशआर को पढ़िए और माँ से मोहब्बत करने वालों के दर्मियान शेयर कीजिए।
होलेہولے
धीरे धीरे, आहिस्ता, सहजता
हौलेہولے
मंद गति से, जैसे-हौले-हौले चलना, पद-हौले हौले-धीरे-धीरे, आहिस्ते से
हौले-सेہولے سے
आहिस्ता से, ठहर ठहर के, हल्के या नरमी से
होले करनाہولے کَرنا
चने की तरह भूनकर खाना, जलाकर खाना
Tafseer Aayat Ole-ul-Amar
अननोन ऑथर
Urdu Shairi Par Ek Nazar
कलीमुद्दीन अहमद
शायरी तन्क़ीद
आसमां होने को था
अखिलेश तिवारी
ग़ज़ल
Ajaibaat-e-Farang
यूसुफ़ खां कम्बल पोश
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Kitabun Marqum
मौलाना जलालुद्दीन रूमी
व्याख्या
Ghazal Qaseeda Aur Rubai
मुग़नी तबस्सुम
पाठ्यक्रम
Nairang-e-Khayal
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
लेख
Masnavi-e-Maulavi-e-Manavi
मसनवी
Farsi Awwal Dabistan
Mushahidat
होश बिलग्रामी
आत्मकथा
Sarguzisht
ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
Dilruba
क़ुर्रतुलऐन हैदर
उपन्यास
Insani Duniya Par Musalmanon Ki Urooj-o-Zawal Ka Asar
अबुल हसन अली नदवी
विश्व इतिहास
तज़्किरा-ए-मशाइख़-ऐ-बिहार
डॉ तय्यब अबदाली
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
मगर बेगम जान से शादी कर के तो वो उन्हें कुल साज़-ओ-सामान के साथ ही घर में रख कर भूल गए और वो बेचारी दुबली पतली नाज़ुक सी बेगम तन्हाई के ग़म में घुलने लगी। न जाने उनकी ज़िंदगी कहाँ से शुरू होती है। वहाँ से जब वो पैदा होने...
मुन्नी बहू झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिर कर बोली, “तीन ही तो रुपये हैं, दे दूँ, तो कम्बल कहाँ से आएगा। माघ-पूस की रात खेत में कैसे कटेगी। उस से कह दो फ़स्ल पर रुपये देंगे। अभी नहीं है।” हल्कू थोड़ी देर तक चुप खड़ा रहा। और अपने दिल...
दिन भर की थकी मान्दी वो अभी अभी अपने बिस्तर पर लेटी थी और लेटते ही सो गई। म्युनिसिपल कमेटी का दारोग़ा सफ़ाई, जिसे वो सेठ जी के नाम से पुकारा करती थी, अभी अभी उसकी हड्डियाँ-पस्लियाँ झिंझोड़ कर शराब के नशे में चूर, घर वापस गया था... वो रात...
कुछ दिनों से मोमिन बहुत बेक़रार था। उसको ऐसा महसूस होता था कि उसका वजूद कच्चा फोड़ा सा बन गया था। काम करते वक़्त, बातें करते हुए हत्ता कि सोचने पर भी उसे एक अजीब क़िस्म का दर्द महसूस होता था। ऐसा दर्द जिसको वो बयान भी करना चाहता तो...
कई दिन से तरफ़ैन अपने अपने मोर्चे पर जमे हुए थे। दिन में इधर और उधर से दस बारह फ़ायर किए जाते जिनकी आवाज़ के साथ कोई इंसानी चीख़ बुलंद नहीं होती थी। मौसम बहुत ख़ुशगवार था। हवा ख़ुद रो फूलों की महक में बसी हुई थी। पहाड़ियों की ऊंचाइयों...
वो जब स्कूल की तरफ़ रवाना हुआ तो उसने रास्ते में एक क़साई देखा, जिसके सर पर एक बहुत बड़ा टोकरा था। उस टोकरे में दो ताज़ा ज़बह किए हुए बकरे थे खालें उतरी हुई थीं, और उनके नंगे गोश्त में से धुआँ उठ रहा था। जगह जगह पर ये...
बीते हुएसब अच्छे बुरे
"क्या?" मैं लरज़ते हुए हाथ को परे धकेलना चाहा। "क्या है?" और तारीकी का भूत बोला, "थाने वालों ने रानो को गिरफ़्तार कर लिया इसका फ़ारसी में तर्जुमा करो।"...
मेरी और उसकी मुलाक़ात आज से ठीक दो बरस पहले अपोलोबंदर पर हुई। शाम का वक़्त था, सूरज की आख़िरी किरनें समुंदर की उन दराज़ लहरों के पीछे ग़ायब हो चुकी थी जो साहिल के बेंच पर बैठ कर देखने से मोटे कपड़े की तहें मालूम होती थीं। मैं गेट...
जब वो ऊपर आया था तो उसका दिल-ओ-दिमाग़ सख़्त मुज़्तरिब और हैजानज़दा था। लेकिन आधे घंटे ही में वो इज़्तिराब और हैजान जो उसको बहुत तंग कर रहा था। किसी हद तक ठंडा हो गया था वो अब साफ़ तौर पर सोच सकता था। कृपाल कौर और उसका सारा ख़ानदान...
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