aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "अहमियत"
अमित शर्मा मीत
born.1989
शायर
अमित अहद
born.1981
अमित झा राही
अमित बजाज
born.1976
अमित गोस्वामी
born.1971
अमित सतपाल तनवर
born.1995
अमित ब्रिज शॉ
यूफ़ोनिक अमित
born.1984
अमित श्रीवास्तव
born.1978
नाज़िर दावत-ओ-तब्लीग़, सदर अंजुमन अहमदिया, पंजाब
पर्काशक
अमित वर्मा
born.1973
नज़ारत तालीफ़-ओ-तसनीफ़ जमाअत-ए-अहमदया
अहमदिया अंजुमन इशाअत-ए-इस्लाम, लाहौर
अब्दुल अज़ीम ताजिर कुतुब, अहमदिया बुक
अनवार अहमदिया प्रेस, क़ादियान
शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहींकिसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है
वो इस तरह भी मिरी अहमियत घटाता हैकि मुझ से मिलने में शर्तें बहुत लगाता है
जब कभी वो किसी को दबी ज़बान में “टू डी बच्चा” कहता तो दिल में ये महसूस करके बड़ा ख़ुश होता कि उसने इस नाम को सही जगह इस्तेमाल किया है और ये कि वो शरीफ़ आदमी और “टू डी बच्चे” की तमीज़ करने की अहलियत रखता है।इस वाक़े के तीसरे रोज़ वो गर्वनमेंट कॉलिज के तीन तलबा को अपने तांगे में बिठा कर मिज़ंग जा रहा था कि उसने उन तीन लड़कों को आपस में ये बातें करते सुना, “नए आईन ने मेरी उम्मीदें बढ़ा दी हैं, अगर साहब असेंबली के मेम्बर हो गए तो किसी सरकारी दफ़्तर में मुलाज़िमत ज़रूर मिल जाएगी।”
ख़ैर मशहूर हुए तो क्या और न हुए तो क्या। मेरा वो फ़ारसी कलाम जिसका हिन्दोस्तान में जवाब नहीं था वो इस दुकान में नज़र नहीं आता। मेरे चन्द अशआर से अगले वक़्तों के लोगों को और मुमकिन है आजकल के लोगों को भी ये धोका हो कि मैंने अपनी शोहरत की सारी वज्ह अपने फ़ारसी कलाम को जानता था और उर्दू की बड़ाई को मैं नहीं समझा था। ये एक मज़ेदार धोका है। उर्दू आगे ...
उर्दू शायरी में रिश्तों की बड़ी अहमियत है। पिता से मोहब्बत और प्रेम का ये पाक जज़्बा भी शायरी का विषय रहा है। हम ऐसे कुछ मुंतख़ब अशआर आप तक पहुँचा रहे हैं जो पिता को मौज़ू बनाते हैं। पिता के प्यार, उस की मोहब्बत और शफ़क़त को और अपने बच्चों के लिए उस की जां-निसारी को वाज़ेह करते हैं। ये अशआर जज़्बे की जिस शिद्दत और एहसास की जिस गहराई से कहे गए हैं इससे मुतअस्सिर हुए बग़ैर आप नहीं रह सकते। इन अशआर को पढ़िए और पिता से मोहब्बत करने वालों के दर्मियान शेयर कीजिए।
अहमद फ़राज़ पिछली सदी के प्रख्यात शायरों में शुमार किए जाते हैं। अपने समकालीन में बेहद सादा और अद्वितीय शैली की वजह से उनकी शायरी ख़ास अहमियत की हामिल है। रेख़्ता फ़राज़ के 20 लोकप्रिय और सबसे ज़्यादा पढ़े गए शेर पेश कर रहा है जिसने पाठकों पर जादू ही नहीं किया बल्कि उनके दिलों को मोह लिया । इन शेरों का चुनाव बहुत आसान नहीं था। हम जानते हैं कि अब भी फ़राज़ के बहुत से लोकप्रिय शेर इस सूची में नहीं हैं। इस सिलसिले में आपकी राय का स्वागत है। अगर हमारे संपादक मंडल को आप का भेजा हुआ शेर पसंद आता है तो हम इसको नई सूची में शामिल करेंगे।उम्मीद है कि आपको हमारी ये कोशिश पसंद आई होगी और आप इस सूची को संवारने और आरास्ता करने में हमारी मदद करेंगें ।
बोसा यानी चुंबन को उर्दू शाइरी की हर परंपरा में ख़ास अहमियत हासिल है। इश्क़-ओ-आशिक़ी के मामलात में ही इस के कई रंग नज़र आते हैं। उर्दू शाइरी में बोसे की तलब की कैफ़ियतों से ले कर माशूक़ के इनकार की सूरतों तक का बयान काफ़ी दिलचस्प है। यहाँ शोख़ी है, हास्य है, हसरत है और ग़ुस्से की मिली-जुली कैफ़ियतें हैं। प्रसुतुत शाइरी से आप को उर्दू शाइरी के कुछ ख़ास रंगों का अंदाज़ा होगा।
अहमियतاہمیت
importance, significance
महत्ता, महिमा, मुख्यता
उर्दू अदब में तन्क़ीद की अहमियत
क़य्यूम सादिक़
आलोचना
तारीख़-ए-इस्लाम में वाक़िया-ए-कर्बला की अहमियत
Aug 1956
हिन्दू तेवहारों की दिल्चसप असलियत
मुंशी राम प्रशाद माथुर
हिन्दू-मत
तोहफ़ा-ए-अहमदिया
गोशा-ए-अाफ़ियत
प्रेमचंद
नॉवेल / उपन्यास
मआशियात की माहियत-ओ-अहमीयत
अबु सालिम
अर्थशास्त्र
Shumara Number-003
अबू मोहम्मद मुस्लेह
अब्दियत-ए-इलाही, हैदराबाद
Bayaz-e-Hamdani
अहलिया अब्दुल्लाह पानीपती
महिलाओं की रचनाएँ
तारीख़-ओ-तंक़ीद
हामिद हसन क़ादरी
कुंज-ए-अाफ़ियत
सुदर्शन
Sufism-The Formative Period
अहमत टी कुरुमुस्तफ़ा
मैं अहमियत भी समझता हूँ क़हक़हों की मगरमज़ा कुछ अपना अलग है उदास होने का
“और फिर हज़रात आप ये भी ख़याल फ़रमाइए कि उनका क़याम शह्र के एक ऐसे हिस्से में है जो न सिर्फ़ शह्र के बीचों बीच आम गुज़र-गाह है बल्कि शह्र का सबसे बड़ा तिजारती मर्कज़ भी है चुनाँचे हर शरीफ़ आदमी को चार-ओ-ना-चार इस बाज़ार से गुज़रना पड़ता है। अलावा अज़ीं शुरफ़ा की पाक दामन बहू बेटियाँ इस बाज़ार की तिजारती अहमियत की वज्ह से यहाँ आने और ख़रीद-ओ-फ़रोख़्त करने प...
जो तू नहीं है तो ये मुकम्मल न हो सकेंगीतिरी यही अहमियत है मेरी कहानियों में
किसी गाँव में शंकर नामी एक किसान रहता था। सीधा-सादा ग़रीब आदमी था। अपने काम से काम, न किसी के लेने में, न किसी के देने में, छक्का-पंजा न जानता था। छल-कपट की उसे छूत भी न लगी थी। ठगे जाने की फ़िक्र न थी। विद्या न जानता था। खाना मिला तो खा लिया न मिला तो चरबन पर क़नाअत की। चरबन भी न मिला तो पानी लिया और राम का नाम लेकर सो रहा। मगर जब कोई मेहमान दरवाज़े ...
मेरी नज़रों के सामने से वो तारीक पर्दा उठने लगा था जो इस अंजाम का बाइ’स था। मगर दफ़अ’तन मेरे जोश और ग़ुस्से ने फिर उसे गिरा दिया। बेगू की गुफ़्तुगू बेहद सादा और मासूमियत से पुर थी मगर मुझे उसका हर लफ़्ज़ बनावट में लिपटा नज़र आया। मैं एक लम्हा भी उसकी अहमियत पर ग़ौर न किया।“बेगू, मैं बच्चा नहीं हूँ कि तुम मुझे चिकनी चुपड़ी बातों से बेवक़ूफ़ बनालोगी।” मैंने ग़ुस्से में उससे कहा, “ये फ़रेब किसी और को देना। कहते हैं कि झूट के पांव नहीं होते। तुमने अभी अभी अपनी ज़बान से इस बात का ए’तराफ़ किया है, अब मैं क्या कहूं।”
अहमियत का मुझे अपनी भी तो अंदाज़ा हैतुम गए वक़्त की मानिंद गँवा दो मुझ को
राज भाई के लंगोट से मैं बहुत तंग आ गया था। मगर मैंने शाम लाल से कुछ न कहा और ख़ामोश बैठा उसकी और उसके दोस्त ग्राहकों की बातें सुनता रहा जिनमें मुबालग़ा ज़्यादा और असलियत कम थी।स्टूडियो में हर शख़्स को म्यूज़िक रुम के इस हादिसे का इल्म था, और तीन रोज़ से गुफ़्तुगू का मौज़ू बस यही चीज़ थी कि राजकिशोर को मिस नीलम ने क्यों एक दम बहन कहने से मना किया। मैंने राजकिशोर की ज़बानी इस बारे में कुछ न सुना मगर उसके एक दोस्त से मालूम हुआ कि उसने अपनी डायरी में उस पर निहायत पर दिलचस्प तब्सिरा लिखा है और प्रार्थना की है कि मिस नीलम का दिल-ओ-दिमाग़ पाक-ओ-साफ़ हो जाये।
इस एहसास से उसके दिमाग़ में एक अ’जीब क़िस्म की अहमियत पैदा हो जाती है और वो ये समझता कि दुनिया में जिस क़दर अफ़साना निगार और नॉवेल नवीस मौजूद हैं सबके सब उसके साथ एक निहायत ही लतीफ़ रिश्ते के ज़रिये से मुंसलिक हैं।अमृत कौर की समझ में ये बात नहीं आती थी कि उसका ख़ाविंद लोगों को मदऊ करने पर उससे हर बार ये क्यों कहा करता है, “अमृत, ये जो आज चाय पर आरहे हैं हिंदुस्तान के बहुत बड़े शायर हैं समझीं, बहुत बड़े शायर। देखो उनकी ख़ातिर तवाज़ो में कोई कसर न रहे।”
मोती लाल नेहरू रिपोर्ट से पहले हिंदोस्तानियों पर दो मुसीबत नाज़िल थीं। एक मलेरिया की दूसरी मिस मेव अल-मा'रूफ़ ब-मादर-ए-हिंद की। मलेरिया का इंसिदाद कुछ तो कौनैन से किया गया बक़िया का कसरत-ए-अम्वात से। मिस मेव के तदारुक में हिंदू-मुसलमान दोनों चारपाई पर सर ब-ज़ानो और चौराहों पर दस्त-व-गिरेबां हैं। नेहरू रिपोर्ट और मादर-ए-हिंद दोनों में एक निस्बत है, एक ...
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