aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "इख़्तिताम"
मिर्ज़ा इख़्तियार हुसैन कैफ़ नियाज़ी
लेखक
इन्तिक़ाम-उल-हसनैन मुन्तकिम हैदरी
मज्लसे-इन्तिज़ाम पायगाह खास
संपादक
सय्यद इख़्तियार जाफ़री
इहतिशाम अबूनस्र
पर्काशक
मोहम्मद नफ़ीस इबतिसाम
मजलिस इंतिज़ामी इफ़तिताह इदारा, हैदराबाद
एम. ए. इख्तियार
सय्यद तय्यब वास्ती
born.1938
शायर
पाया क़ादिर नामे ने आज इख़्तितामइक ग़ज़ल तुम और पढ़ लो वस्सलाम
हाज़्रीन अभी दिल ही दिल में हसद से जले जा रहे थे कि हाय, मरहूम की आई हमें क्यूँ न आ गई कि दम भर को बादल के एक फ़ाल्सई टुकड़े ने सूरज को ढक लिया और हल्की-हल्की फुवार पड़ने लगी। मुंशी जी ने यकबारगी बेरी के पत्तों का फूंक...
लड़की ने तीखी-तीखी नज़रों से अख़लाक़ की तरफ़ देखा और बैठ गई। बैठ कर उसने अपनी सहेली से सरगोशी में कुछ कहा, दोनों हौले-हौले हंसीं और फ़िल्म देखने में मशग़ूल होगईं। फ़िल्म के इख़्तिताम पर जब क़ाइद-ए-आ’ज़म की तस्वीर नमूदार हुई तो अख़लाक़ उठा। ख़ुदा मालूम क्या हुआ कि उसका...
दरिया का इंतिक़ाम डुबो दे न घर तिरासाहिल से रोज़ रोज़ न कंकर उठा के ला
मैं सोचता हूँ मगर याद कुछ नहीं आताकि इख़्तिताम कहाँ ख़्वाब के सफ़र का हुआ
औरत को मौज़ू बनाने वाली शायरी औरत के हुस्न, उस की सिन्फ़ी ख़ुसूसियात, उस के तईं इख़्तियार किए जाने वाले मर्द असास समाज के रवय्यों और दीगर बहुत से पहलुओं का अहाता करती है। औरत की इस कथा के मुख़्तलिफ़ रंगों को हमारे इस इन्तिख़ाब में देखिए।
शेर-ओ-अदब के समाजी सरोकार भी वाज़ेह रहे हैं और शायरों ने इब्तिदा ही से अपने आप पास के मसाएल को शायरी का हिस्सा बनाया है अल-बत्ता एक दौर ऐसा आया जब शायरी को समाजी इन्क़िलाब के एक ज़रिये के तौर पर इख़्तियार किया गया और समाज के निचले, गिरे पड़े और किसान तबक़े के मसाएल का इज़हार शायरी का बुनियादी मौज़ू बन गया। आप इन शेरों में देखेंगे कि किसान तबक़ा ज़िंदगी करने के अमल में किस कर्ब और दुख से गुज़र्ता है और उस की समाजी हैसियत क्या है।किसानों पर की जाने वाली शायरी की और भी कई जहतें है। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
ग़ुरूर ज़िंदगी जीने का एक मनफ़ी रवव्या है। आदमी जब ख़ुद पसंदी में मुब्तिला हो जाता है तो उसे अपनी ज़ात के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता। शायरी में जिस ग़ुरूर को कसरत से मौज़ू बनाया गया है वह महबूब का इख़्तियार-कर्दा ग़ुरूर है। महबूब अपने हुस्न, अपनी चमक दमक, अपने चाहे जाने और अपने चाहने वालों की कसरत पर ग़ुरूर करता है और अपने आशिक़ों को अपने इस रवय्ये से दुख पहुँचाता है। एक छोटा सा शेरी इन्तिख़ाब आप के लिए हाज़िर है।
इख़्तितामاختتام
end
Shairi Mein Sufiyana Istilahaat
शायरी तन्क़ीद
Kaifiyaat
काव्य संग्रह
फ़ोर्ट विलियम कॉलेज हुस्न-ए-इख़्तिलात
शहनाज़ नबी
आलोचना
आगरा में उर्दू सहाफ़त
पत्रकारिता
Multan Aur Silsila-e-Suharvardia
सुहरवर्दिय्या
Darul Adab Akbarabad
मुशायरा का इख़्तिरा-ओ-ईजाद
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
शोध
इख़्तिरा-ए-जदीद
किशन कुमार वक़ार
मसनवी
Ilham-e-Wafa
ग़ज़ल
Tauheed Wahdatul Wajood Ke Tanazur Mein
Dar-ul-Adab Akbarabad
Raf-e-Mushkilat Talaffuz Darzaban-e-Ingleesi
अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआहुसूल-ए-रिज़्क़ हुआ भी तो ज़ेर-ए-दाम हुआ
इतने सारे सवालात उठाने के बाद आपको मज़ीद उलझन से बचाने के लिए कुछ तौज़ीही मफ़रूज़ात या मुस्लिमात का बयान भी ज़रूरी है, ताकि हवाले में आसानी हो सके। पहला मफ़रूज़ा ये है कि बहुत मोटी तफ़रीक़ के तौर पर वो तहरीर शे’र है जो मौज़ूं है, और हर वो...
ग़ालिब मिला-ए-आला की अदालत में पस-ए-मंज़र: एक बहुत ही वसीअ कमरा, चारों तरफ़ बड़े बड़े तारे नज़र आरहे हैं, शुमाल-ओ-जुनूब में दो-रूया सफ़ेद साये नज़र आरहे हैं, उन सायों के इख़्तिताम पर मशरिक़ी किनारे पर एक 75-80 बरस का बूढ़ा पुश्त ख़म, बदन में रअशा लेकिन इस उम्र में भी...
मैं मुस्कुराई, "शीदी, अगर तुम ज़िंदगी भर मुझसे ऐसी ही मोहब्बत करोगे जैसी आज करते हो तो मैं अपनी आँखों की कमी को कभी महसूस न करूंगी। मेरे प्यारे शीदी! तुम्हें नहीं मालूम दिन रात मोहब्बत भरे फ़िक़रे सुनते रहना भी एक फ़िरदौसी ज़िंदगी है। मेरी आँखें आ जाएंगी तो...
न इख़्तिलात में वो रमकि बद-मज़ा हों ख़्वाहिशें
मैं आपका शुक्रिया अदा करता हूँ कि आपने प्रोफ़ेसर साहिब के ख़्यालात सुनने की तकलीफ़ गवारा फ़रमाई। इसके बाद साहिब-ए-सदर उठे और उन्होंने प्रोफ़ेसर साहिब और मिर्ज़ा काज़िम का शुक्रिया हाज़िरीन की तरफ़ से अदा की और जलसे के इख़्तिताम का ऐलान किया। फिर क्या था बड़े बड़े अदीब, शायर,...
“मुझे मालूम न था मैं किधर भाग रहा हूँ। मेरा रुख़ अपने घर की जानिब न था। मैं शुरू ही से उस तरफ़ भाग रहा था जिधर बाज़ार का इख़्तिताम था। इस ग़लती का मुझे उस वक़्त एहसास हुआ जब दो तीन आदमियों ने मुझे पकड़ लिया।” बूढ़ा इतना कह...
नैनीताल क्लब में मुशायरा हो रहा था और निज़ामत कर रहे थे जनाब कँवर महिन्द्र सिंह बेदी सहर। मुशायरे के इख्तिताम पर जब बशीर बद्र और वसीम बरेलवी पढ़ने के लिए बाक़ी रह गए तो उन्होंने अपनी मुहब्बत का इज़हार किया, “ये मेरी दोनों आँखें हैं। मैं किस को पहले...
रस्ते का इंतिख़ाब ज़रूरी सा हो गयाअब इख़्तिताम-ए-बाब ज़रूरी सा हो गया
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