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ग़ज़ल
तकलीफ़-ए-इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ कभी कभी
यूँ भी हुई है पुर्सिश-ए-पिन्हाँ कभी कभी
उरूज ज़ैदी बदायूनी
ग़ज़ल
मैं फिर हूँ इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ का मुंतज़िर
इक याद-ए-इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ लिए हुए
जगन्नाथ आज़ाद
ग़ज़ल
मुझे तो चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी इल्तिफ़ात लगी
तिरे सितम पे भी ईसार का गुमाँ गुज़रा
सय्यदा शान-ए-मेराज
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ग़ज़ल
अल्लाह-रे जज़्ब-ए-इश्क़ की पिंदार-ए-हुस्न-ए-दोस्त
मजरूह-ए-इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ है आज-कल
राज़ मुरादाबादी
नअत
हश्र में मुझ को बस इतना आसरा दरकार है
इल्तिफ़ात-ए-शाफ़े'-ए-रोज़-ए-जज़ा दरकार है
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
इल्तिफ़ात-ए-हुस्न-ओ-कैफ़-ए-इश्क़-ओ-ऐश-ए-वस्ल-ए-दोस्त
गर्दिश-ए-अय्याम ने इन सब को सपना कर दिया
राजेन्द्र बहादुर माैज
ग़ज़ल
क्या ख़बर 'हुर्मत' कि तकमील-ए-सफ़र हो किस तरह
इल्तिफ़ात-ए-वादी-ए-पर-ख़ार बढ़ता जाए है
हुरमतुल इकराम
नज़्म
शिकस्त
रेगज़ारों में बगूलों के सिवा कुछ भी नहीं
साया-ए-अब्र-ए-गुरेज़ाँ से मुझे क्या लेना