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नोवेल मैनुफेक्चरिंग कंपनी लिमिटेड

इब्न-ए-इंशा

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    पाकिस्तान नॉवेल मैनुफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड होनहार मुसन्निफ़ीन और यक्का-ताज़ नाशिरीन के लिए अपनी ख़िदमात पेश करने का मसर्रत से ऐलान करती है। कारख़ाना हज़ा में नॉवेल जदीद तरीन ऑटोमेटिक मशीनों पर तैयार किए जाते हैं और तैयारी के दौरान उन्हें हाथ से नहीं छुवा जाता। नॉवेल इस्लामी हो या जासूसी, तारीख़ी या रूमानी, माल उम्दा और ख़ालिस लगाया जाता है। इसलिए ये नॉवेल मज़बूत और पायदार होते हैं।

    पढ़ने के अलावा भी ये कई काम आते हैं। बच्चा रो रहा हो, ज़िद कर रहा हो, दो ज़र्बों में राह-ए-रास्त पर आजाएगा। बिल्ली ने दूध या कुत्ते ने नेअमत ख़ाना में मुँह डाल दिया हो, दूर ही से ताक कर मारिए। फिर इधर का रुख़ नहीं करेगा। बैठने की चौकी और घड़े की घड़ौंची के तौर पर इस्तेमाल होने के अलावा ये चोरों डाकूओं के मुक़ाबले में ढाल का काम भी देता है। एक तो इसलिए कि इसके मुताले से दिल में शुजाअत के जज़्बात ख़्वाह-मख़ाह मोजज़िन होजाते हैं। दूसरे अपनी ज़ख़ामत और पट्ठे की नोकीली जिल्द के बाइस... ख़वातीन के लिए हमारे हाँ वाश एंड वियर (Wash and Wear) नॉवेल भी मौजूद हैं ताकि हीरोइन का नाम बदल कर प्लाट को बार-बार इस्तेमाल किया जा सके। एक ही प्लाट बरसों चलता है। पंद्रह बीस नाविलों के लिए काफ़ी रहता है।

    वाश एंड वियर क्वालिटी हमारे इस्लामी तारीख़ी नाविलों में भी दस्तयाब है। आर्डर के साथ इस अमर से मुत्तला करना ज़रूरी है कि कौन सी क़िस्म मतलूब है। 65% रूमान और 35% तारीख़ वाली या 65% तारीख़ और 35% रूमान वाली। अज्ज़ा-ए-तर्कीबी आम तौर पर हस्ब-ए-ज़ैल होंगे:

    1. हीरोइन, काफ़िर दोशीज़ा, तीर तफ़ंग, बनोट पट्टे और भेस बदलने की माहिर। दिल ईमान की रोशनी से मुनव्वर, छुप-छुप कर नमाज़ पढ़ने वाली।

    2. काफ़िर बादशाह, हमारी हीरोइन का बाप लेकिन निहायत शक़ी उल क़ल्ब। अंजाम उसका बुरा होगा।

    3. लश्कर कुफ़्फ़ार, जिसके सारे जरनैल लहीम शहीम और बुज़दिल।

    4. अहल इस्लाम का लश्कर, जिसका हर सिपाही सवा लाख पर भारी। नेकी और ख़ुदा-परस्ती आग का पुतला। पाबंद सोम-ओ-सलात, क़बूल सूरत बल्कि चंदे आफ़ताब चंदे माहताब। बह्र-ए-ज़ुल्मात में घोड़े दौड़ाने वाला।

    5. हीरो, लश्कर मुतज़क्किरा सदर का सरदार। इस हुस्न की क्या तारीफ़ करें, कुछ कहते हुए जी डरता है।

    6. सब्ज़-पोश ख़्वाजा खिज़र। जहां प्लाट रुक जाये और कुछ समझ में आए, वहां मुश्किल कुशाई करने वाला।

    7. हीरो का जांनिसार साथी। नौजवान और कँवारा ताकि उसकी शादी बादअज़ां हीरोइन की वफ़ादार और महरम-ए-राज़ ख़ादिमा या सहेली से हो सके।

    8. काफ़िर बादशाह का एक चशम वज़ीर जो शहज़ादी से अपने बेटे की, बल्कि मुम्किन हो तो अपनी शादी रचाने पर उधार खाए बैठा है। चूँकि उधार मुहब्बत की क़ैंची है, लिहाज़ा हीरोइन के इल्तिफ़ात से महरूम रहता है।

    प्लाट तो हमारे हाँ कई तरह के हैं लेकिन एक स्टैंर्ड मॉडल जो आम तौर पर मक़बूल है, ये है कि एक क़बीले का नौजवान दूसरे क़बीले की दोशीज़ा पर फ़िदा होता है और होता चला जाता है। वो दोशीज़ा लामुहाला तौर पर दूसरे क़बीले के सरदार की चहेती बेटी होती है। पाँच उंगलियां पांचों चराग़। ख़ूबसूरत, सलीक़ा-मंद, आलिम बेबदल। लाखों अशआर ज़बानी याद। करना ख़ुदा का क्या होता है, इस बीच में दोनों क़बीलों में लड़ाई ठन जाती है। हमारा हीरो मुहब्बत को फ़र्ज़ पर क़ुर्बान कर के शमशीर उठा लेता है और बहादुरी के जौहर दिखाता, कुश्तों के पुश्ते लगाता दुश्मन की क़ैद में चला जाता है। मुहाफ़िज़ों की आँख में धूल झोंक कर तालिब-ओ-मतलूब एक दूसरे से मिलते हैं। अशआर और मकालमों का तबादला होता है और हीरोइन बी पहले एक जान से फिर हज़ार जान से उस पर आशिक़ हो जाती है। रास्ते में ज़ालिम समाज कई बार आता है लेकिन हर दफ़ा मुँह की खाता है। दाँत पीसता रह जाता है। आख़िर में नॉवेल हक़ की फ़तह, मुहब्बत की जीत, नारा तकबीर, शरई निकाह, दोनों क़बीलों के मिलाप और मुसन्निफ़ की तरफ़ से दुआ-ए-ख़ैर के साथ आइन्दा नॉवेल की ख़ुशख़बरी पर ख़त्म होता है।

    आर्डर देते वक़्त मुसन्निफ़ या नाशिर को बताना होगा कि नॉवेल पाँच सौ सफ़े का चाहिए, हज़ार सफ़े का या पंद्रह सौ का? वज़न का हिसाब भी है, दो सेरी नॉवेल, पाँच सेरी नॉवेल, सात सेरी नॉवेल, पंद्रह बीस सेरी भी ख़ास आर्डर पर मिल सकते हैं। गाहक को ये भी बताना होगा कि इसी प्लाट को बरक़रार रखते हुए माहौल किस मुल्क का रखा जाये, इराक़ का? अरब का? ईरान का? अफ़ग़ानिस्तान का? हीरो और हीरोइन के नाम भी गाहक की मर्ज़ी के मुताबिक़ रखे जाते हैं। एक प्लाट पर तीन या इससे ज़्यादा नॉवेल लेने पर 33% रिआयत।

    ख़वातीन के लिए भी जैसा कि हमने ऊपर ज़िक्र किया है, घरेलू और ग़ैर घरेलू हर तरह के नॉवेल बकिफ़ायत हमारे हाँ से मिल सकते हैं। उनमें भी मुहब्बत और ख़ानादारी का तनासुब बिलउमूम 65% और 35% का होता है। फ़र्माइश पर घटाया या बढ़ाया जा सकता है। ख़ानादारी से मतलब है नॉवेल के किरदारों के कपड़ों का ज़िक्र, ख़ानदानी हवेली का नक़्शा, ब्याह शादी की रस्मों का अहवाल, जे़वरात की तफ़सील वग़ैरा। हीरो और हीरोइन के चचाज़ाद भाई और बहनें। सहेलियाँ और रक़ीब वग़ैरा भी मतलूबा तादाद में नॉवेल में डलवाए जा सकते हैं। हमारे कारख़ाने की एक ख़ुसूसियत ये है कि ख़वातीन के नॉवेल मुरव्वजा पाकिस्तानी फिल्मों को देखकर लिखे जाते हैं ताकि बादअज़ां फ़िल्म साज़ हज़रात उन पर मज़ीद फिल्में बना सकें। मामूली सी उजरत पर इन नाविलों में गाने और दो गाने वग़ैरा भी डाले जा सकते हैं। इससे मुसन्निफ़ और फ़िल्म साज़ का काम और आसान हो जाता है। गाहक को फ़क़त हीरोइन का नाम तजवीज़ कर देना चाहिए। बाक़ी सारा काम हमारे ज़िम्मे। माल की घर पर डीलेवरी का इंतज़ाम है।

    बाज़ार के नॉवेल बिलउमूम ऐसे गुनजान लिखे और छपे होते हैं कि पढ़ने वालों की आँख पर बुरा असर पड़ता है। हम कोशिश करते हैं कि सफ़े में कम से कम लफ़्ज़ रहें। मकालमे और मकालमा बोलने वाले, दोनों के लिए अलग अलग सतर इस्तेमाल की जाती है। नमूना मुलाहिज़ा फ़रमाईए:

    शहज़ादी सब्ज़परी ने कहा,

    “प्यारे गुलफ़ाम!”

    प्यारे गुलफ़ाम ने कहा, “हाँ शहज़ादी गुलफ़ाम, इरशाद!”

    शहज़ादी सब्ज़ परी “एक बात कहूं?”

    गुलफ़ाम “हाँ हाँ कहो।”

    शहज़ादी “मुझे तुमसे प्यार है।”

    गुलफ़ाम “सच्च!”

    शहज़ादी साहिबा “हाँ सच!”

    गुलफ़ाम “तो फिर शुक्रिया!”

    शहज़ादी ने कहा,

    “प्यारे गुलफ़ाम, इसमें शुक्रिया की क्या बात है। ये मेरा इन्सानी फ़र्ज़ था।”

    एक ज़रूरी ऐलान। हमारे कारख़ाने ने एक उम्दा आई लोशन तैयार किया है जो रिक़्क़त पैदा करने वाले नाविलों के साथ इस्तेमाल किया जाता है। जहां ऐसा सीन आए, रोने के बाद दो दो क़तरे ड्रोपर से आँखों में डाल लीजिए, आँखें धुल जाएँगी, नज़र तेज़ हो जाएगी। मुसलसल इस्तेमाल से ऐनक की आदत भी छूट जाती है। फ़ी शीशी दो रुपये। तीन शीशियों पर महसूल डाक माफ़। आँखें पोंछने के लिए उम्दा रूमाल और दुपट्टे भी हमारे हाँ दस्तयाब हैं।

    स्रोत:

    Khumar-e-Gandum (Pg. 37)

    • लेखक: इब्न-ए-इंशा
      • प्रकाशक: लाहौर अकेडमी, लाहौर
      • प्रकाशन वर्ष: 2005

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