aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "उंडेल"
ज़बाना-ज़न था जिगर-सोज़ तिश्नगी का अज़ाबसो जौफ़-ए-सीना में दोज़ख़ उंडेल ली मैं ने
तेरी चाहत के ज़ाइक़ों की तमाम ख़ुश्बूमिरी रगों में उंडेल दी है
मैंने हार कर उसके मुताल्लिक़ लिखने का ख़्याल छोड़ दिया। आठ साल हुए कालू भंगी मर गया। वो जो कभी बीमार नहीं हुआ था अचानक ऐसा बीमार पड़ा कि फिर कभी बिस्तर-ए-अलालत से ना उठा, उसे हस्पताल में मरीज़ रखवा दिया था। वो अलग वार्ड में रहता था, कम्पाउन्डर दूर...
समुंदरों में उंडेल जितनी शराब चाहेन हर्फ़ पानी पे आएगा और न उस की तक़्दीस ख़त्म होगी
सो लहू के जाम उंडेल करमिरे जाँ-फ़रोश चले गए
उंडेलانڈیل
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सुबह बहुत आहिस्ता आहिस्ता बिस्तर पर से उठेगा। नौकर चाय की प्याली बना कर लाएगा। अगर रात की बची हुई रम सिरहाने पड़ी है तो उसे चाय में उंडेल लेगा और उस मिक्सचर को एक एक घूँट करके ऐसे पीएगा जैसे उसमें ज़ाइक़े की कोई हिस ही नहीं। बदन पर...
मुंशी जी के घर में इस्तिख़्वानी नस्ल की एक गाय थी, खली दाना और भूसा तो उसे कसरत से खिलाया जाता था मगर वो सब उसकी हड्डियों में पैवस्त होजाता था और उसका ढांचा रोज़ बरोज़ नुमायां हो जाता था। राम ग़ुलाम ने एक हांडी में उसका गोबर घोला और...
गो कि उनका इशारा सरीहन मेरी नाक की तरफ़ था, ताहम रफा-ए-शर की ख़ातिर मैंने कहा, “थोड़ी देर के लिए ये मान लेता हूँ कि काफ़ी में से वाक़ई भीनी-भीनी ख़ुश्बू आती है। मगर ये कहाँ की मंतिक़ है कि जो चीज़ नाक को पसंद हो वो हलक़ में उंडेल...
मगर मैं बहुत देर तक इन अफ़्सानों की दुनिया में न रह सका। उस वक़्त तक दोनों अदीब विस्की की बोतल आधी के लगभग ख़त्म कर चुके थे। मन्नान के ख़्याल में क़िस्म-क़िस्म की शराब को मिलाकर पीने की धुन समाई। चुनांचे जुम्मन मियां ने बहुत सी बोतलों से एक-एक...
हामिद ने कुछ देर सोच कर एक ठिकाना बताया। टैक्सी ने उधर का रुख़ किया। थोड़ी ही देर के बाद बंबई का सबसे बड़ा दलाल उनके साथ था। उसने मुख़्तलिफ़ मुक़ामात से मुख़्तलिफ़ लड़कियां निकाल निकाल कर पेश कीं मगर हामिद को कोई पसंद न आई, वो नफ़ासतपसंद था। सफ़ाई...
“मसऊद! पानी का एक घूँट पिलवाना।” मसऊद ख़ामोशी से उठा और कोठड़ी के एक कोने में पड़े हुए घड़े से गिलास में पानी उंडेल कर ले आया। बूढ़े ने गिलास लेते ही मुँह से लगा लिया और एक घूँट में सारा पानी पी गया और ख़ाली गिलास ज़मीन पर रखते...
सुब्ह होते उंडेल देती हैमंडियों, दफ़्तरों मिलों की तरफ़
जिन के माँ बाप का मिला न सुराग़ज़ेहन में ये उंडेल देती है
अताउल्लाह ने सारी शीशी उसके हलक़ में उंडेल दी और इत्मिनान का सांस लिया, “अब तुम गहरी नींद सो जाओगे।” करीम ने अपने बाप का हाथ पकड़ा और कहा, “अब्बा... अब कुछ खाने को दो।”...
रास्ते में एक चश्मे के किनारे उसने अपनी कार ठहरा ली। और देर तक हाथ पाँव-धोता रहा, आँखों को छींटे देता रहा, एक पहाड़ी गीत गुनगुनाता रहा और पानी लेकर कुलिल्याँ करता रहा, आहिस्ता-आहिस्ता उस की आँखों में रचा हुआ ख़ुमार दूर हो गया और बीयर का कसैला ज़ायक़ा भी...
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