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ग़ज़ल
बशीर बद्र
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हिंदी ग़ज़ल
हाँ मुझे उड़ना है लेकिन इस का मतलब ये नहीं
अपने सच्चे बाज़ुओं में इस के उस के पर रखूँ
कुंवर बेचैन
नज़्म
बड़े नाज़ से आज उभरा है सूरज
इन्हें जो नए बाल-ओ-पर आ के बख़्शे
इन्हें जो नए सिर से उड़ना सिखाए
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
ख़्वाब पैरों तले शानों पे है ज़िम्मे-दारी
हम को उड़ना भी है पंखों को निकलना भी नहीं
दख़लन भोपाली
ग़ज़ल
जता कर ख़ाक का उड़ना दिखा कर गर्द का चक्कर
वहीं हम ले चले उस गुल-बदन को घेर आँधी में