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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
हो न ये फूल तो बुलबुल का तरन्नुम भी न हो
चमन-ए-दह्र में कलियों का तबस्सुम भी न हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
परिंदे की फ़रियाद
लगती है चोट दिल पर आता है याद जिस दम
शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
नज़्र-ए-अलीगढ़
हर आन यहाँ सहबा-ए-कुहन इक साग़र-ए-नौ में ढलती है
कलियों से हुस्न टपकता है फूलों से जवानी उबलती है