aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कारगर"
कारूर नीलकंठ पिल्लै
1898 - 1975
लेखक
बुक कार्नर शो रूम
पर्काशक
अबदुल अली कारंग
अनुवादक
रहबर कार्नर, दिल्ली
बुक कार्नर, मोतिहारी
किफ़ायत कार्नर, दिल्ली
रीडर्स कार्नर, बैंगलोर
इक़बाल बुक कार्नर, गुलबर्ग, लाहौर
हेनरी कार्टर
कुलवंत कौर तेज़ आंच पर चढ़ी हुई हांडी की तरह उबलने लगी। लेकिन ईशर सिंह उन तमाम हीलों के बावजूद ख़ुद में हरारत पैदा न कर सका। जितने गुर और जितने दाव उसे याद थे। सब के सब उसने पिट जाने वाले पहलवान की तरह इस्तेमाल करदिए, पर कोई कारगर...
अब ग़म उठाएँ किस लिए आँसू बहाएँ किस लिए ये दिल जलाएँ किस लिए यूँ जाँ गंवाएँ किस लिएपेशा न हो जिस का सितम ढूँडेंगे अब ऐसा सनम होंगे कहीं तो कारगर मैं और मिरी आवारगी
आख़री दरख़्वास्त करने से पहले मैंने तमाम ज़रूरी मसालहा बड़ी एहतियात से जमा किया। जिन प्रोफ़ेसरों से मुझे अब हम-उम्री का फख़्र हासिल था उनके बे तकल्लुफ़ी से आरज़ुओं का इज़हार किया और उनसे वालिद को ख़ुतूत लिखवाए कि अगले साल लड़के को ज़रूर आप हॉस्टल में भेज दें। बा’ज़...
दर्द के मुश्ताक़ गुस्ताख़ी तो है लेकिन मुआ'फ़अब दुआ अंदेशा ये है कारगर हो जाएगी
आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मा'लूम हैपत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब : ग़ालिबयात
कार-गरکار گر
Effective
कारगरکارگر
गुणकारी, फ़ाइदामंद, प्रभाव- कर, असरअंदाज़ ।।
Yahudiyon Ka Ahwal
इतिहास
Mujrim
Khulasah Qawaneen-o-Ahkam Collectory-o-Fojdari
संविधान / आईन
कारीगर
जिस वक़्त लाल बिहारी सिंह सर झुकाए आनंदी के दरवाज़े पर खड़ा था। उसी वक़्त सिरी कंठ भी आँखें लाल किए बाहर से आए। भाई को खड़ा देखा तो नफ़रत से आँखें फेर लीं और कतरा कर निकल गए। गोया उसके साये से भी परहेज़ है। आनंदी ने लाल बिहारी...
दाया ने इस हुक्म की तामील ज़रूरी न समझी। बेगम साहिबा का ग़ुस्सा फ़िरौ करने की इससे ज़्यादा कारगर कोई तदबीर ज़ेह्न में न आई। उसने नसीर को इशारे से अपनी तरफ़ बुलाया। वो दोनों हाथ फैलाए लड़खड़ाता हुआ उसकी तरफ़ चला। दाया ने उसे गोद में उठा लिया। और...
दर्द-ए-दिल की उन्हें ख़बर न हुईकोई तदबीर कारगर न हुई
अल्लामा इक़बाल चौधरी शहाब उद्दीन से हमेशा मज़ाक़ करते थे। चौधरी साहब बहुत काले थे। एक दिन अल्लामा चौधरी साहब से मिलने उनके घर गए। बताया गया कि चौधरी जी ग़ुस्लख़ाने में हैं। इक़बाल कुछ देर इंतज़ार में बैठे रहे। जब चौधरी साहब बाहर आए तो इक़बाल ने कहा, “पहले...
इन दोनों शे’रों को मिलाकर पढ़ें तो ये भी साबित हो जाता है कि मिर्ज़ा ग़ालिब क़ैस आमिरी से बहुत ज़्यादा ख़ूबसूरत थे। पहला शे’र बताता है कि आप मजनूं से उम्र में बहुत बड़े थे लेकिन दूसरा शे’र कह रहा है कि लैला जो मजनूं की महबूबा होने के...
बुढ़ापा अक्सर बचपन का दौर-ए-सानी हुआ करता है। बूढ़ी काकी में ज़ायक़ा के सिवा कोई हिस बाक़ी न थी और न अपनी शिकायतों की तरफ़ मुख़ातिब करने का, रोने के सिवा कोई दूसरा ज़रिया आँखें हाथ, पैर सब जवाब दे चुके थे। ज़मीन पर पड़ी रहतीं और जब घर वाले...
वक़्त की सई-ए-मुसलसल कारगर होती गईज़िंदगी लहज़ा-ब-लहज़ा मुख़्तसर होती गई
सुग़रा बाप की मौत के सदमे से नीम पागल हो गई। उसने क़रीब-क़रीब आधे बाल नोच डाले। हमसायों ने बहुत दम-दिलासा दिया मगर ये कारगर कैसे होता... वो तो ऐसी कश्ती के मानिंद थी जो उसका बादबान हो न कोई पतवार और बीज मंजधार के आन फंसी हुई। पटियाला के...
हर दम आती है गरचे आह पर आहपर कोई कारगर नहीं आती
गुज़री है क्या मज़े से ख़यालों में ज़िंदगीदूरी का ये तिलिस्म बड़ा कारगर रहा
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