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नज़्म
शिकवा
रहमतें हैं तिरी अग़्यार के काशानों पर
बर्क़ गिरती है तो बेचारे मुसलमानों पर
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं तो मैं चौंक उठी है ये फ़ज़ा-ए-ख़ामोश
ये सदा कब की सुनी आती है फिर कानों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
रौशनी तेज़ करो
रौशनी तेज़ करो, तेज़ करो, तेज़ करो
रौशनी राह में बाक़ी है न काशानों में
शमीम करहानी
नज़्म
अलिफ़ लैला
जिस तरह ताक़ में जल बुझती हैं शम्ओं की क़तार
ज़ुल्मत-ए-शब में जगाती हुई काशानों को
वामिक़ जौनपुरी
ग़ज़ल
काशानों में रहने वाले आबाद करें वीरानों को
ये दीवाने हैं दीवाने क्या कहते हैं दीवानों को
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
क़हक़हे दर्द की तम्हीद भी हो सकते हैं
बिजलियाँ भी कभी टकराती हैं काशानों से