aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कासा-ए-दरवेश"
शहर-ए-गुल कासा-ए-दरवेश बना बैठा हैकोई शोअ'ला किसी जलते हुए बन से आए
दोस्ती में है शर्त ये 'दरवेश'ज़िक्र मैं तू का ताक़ पर रखिए
अपना ही 'दरवेश' तो शायददेखो सू-ए-दार है बाबा
मिले हो जब भी तन्हाई में 'दरवेश'कोई तक़रीब-ए-सादा हो गई है
ये नस्ल-ए-नौ है इतनी मोहज़्ज़ब कि इस में आज'दरवेश' गुफ़्तुगू का सलीक़ा नहीं रहा
काश 'दरवेश' हो मेरी तक़दीर मेंमंज़र-ए-ख़ुशनुमा उम्र भर देखना
'दरवेश' अपनी ज़ात से तुम क्यों हो मुतमइनक्या गर्दिश-ए-हयात के तेवर से दूर है
तेरे हाथों का क़लम है जो असा-ए-दरवेशयही इक दिन तुझे ख़ुर्शीद-कुलाही देगा
रेज़ा-ए-संग तो आया गुल-ए-मंज़र न सहीकासा-ए-चश्म को हैरत से खुला रहने दो
आजकल कराची के कॉलिजों और स्कूलों में मुबाहिसों और यौमों का मौसम है। सिक्का बंद मेहमान-ए-खुसूसी को दिन में दो दो दरसगा हैं भुगतानी पड़ रही हैं। सुबह कहीं है शाम कहीं। हमारे एक बुज़ुर्ग तो मुदर्रिसा रशीद ये हनफ़ीह में एलोरा और अजंता की तस्वीरों पर इज़हार-ए-ख़याल कर आए...
फिरा हूँ कासा लिए लफ़्ज़ लफ़्ज़ के पीछेतमाम 'उम्र ये सौदा न सर से निकलेगा
'फ़ज़ा' कि दरवेश-ए-हर्फ़ है देखना ज़रा उस का बाँकपन तुमक़मीस ख़ुर्शीद-बख़्त वाली कुलाह गर्दूं-रिकाब वाली
कीसा-ए-दरवेश में जो भी है ज़र उतना ही हैऔर देखा जाए तो मुझ को ख़तर उतना ही है
साहिब-ए-फिक्र-ओ-बंदा-ए-दरवेशदोस्तों के बड़े अक़ीदे केश
ताज में जिन के टकते थे गौहरठोकरें खाते हैं वो कासा-ए-सर
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