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नज़्म
आवारा
जी में आता है ये मुर्दा चाँद तारे नोच लूँ
इस किनारे नोच लूँ और उस किनारे नोच लूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तराना-ए-हिन्दी
ऐ आब-रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझ को
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा
अल्लामा इक़बाल
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ग़ज़ल
जहाँ दरिया कहीं अपने किनारे छोड़ देता है
कोई उठता है और तूफ़ान का रुख़ मोड़ देता है