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ग़ज़ल
मगर ये क़िस्सा तब का है कि जब उस के क़रीं थे हम
ये सारा आसमाँ अपना था ख़ुश-बाश-ओ-हसीं थे हम
शहराम सर्मदी
नज़्म
यार परिंदे!
यस्सू पुंजू हार कबूतर, कंचे वनचे, ताश
जीतने वाले नालाँ, हारने वाले थे ख़ुश-बाश