aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ख़ैरियत"
ख़ैरात नदीम
1922 - 1989
लेखक
सैय्यद ख़ैरात अहमद
मीर ख़ैरात अली ख़ान
संपादक
सय्यद ख़ैरात अली ज़ैदी
मतबा खेरिया मिस्रिया शहर
पर्काशक
मौलवी सय्यद ख़ैरात हसन
हाजिब ख़ैरात देहल्वी
मीर खैरात अली मुन्जिम
उसके रिश्तेदार लोहे की मोटी-मोटी ज़ंजीरों में उसे बांध कर लाए और पागलखाने में दाख़िल करा गए। महीने में एक बार मुलाक़ात के लिए ये लोग आते थे और उसकी ख़ैर-ख़ैरियत दरयाफ़्त कर के चले जाते थे। एक मुद्दत तक ये सिलसिला जारी रहा। पर जब पाकिस्तान, हिंदोस्तान की गड़बड़...
दोनों आलू निकाल-निकाल कर जलते-जलते खाने लगे। कल से कुछ भी नहीं खाया था। इतना सब्र न था कि उन्हें ठंडा हो जाने दें। कई बार दोनों की ज़बानें जल गईं। छिल जाने पर आलू का बैरूनी हिस्सा तो ज़्यादा गर्म न मालूम होता था लेकिन दाँतों के तले पड़ते...
कल से मसरूफ़-ए-ख़ैरियत मैं हूँशेर ताज़ा कोई हुआ ही नहीं
ख़ैरियत अपनी लिखा करता हूँअब तो तक़दीर में ख़तरा भी नहीं
ख़ुदा करे वो पेड़ ख़ैरियत से होकई दिनों से उस का राब्ता नहीं
ख़ैरियतخیریت
welfare, safety, happiness
Basic English
इंसिदाद-ए-गदागरी और इसलाह-ए-ख़ैरात
ख़्वाजा हसन निज़ामी
इस्लामियात
Kashshafun Nujoom
ज्योतिष
Nayyar-e-Azam
अन्य
Noor-e-Iman
Dastoor-ul-Afazil
Matla-e-Anwar
Nayyar-e-Aazam
Maubaf-e-Sahar
ग़ज़ल
Khamsa-e-Kamila Ma Salam
Aqayid-ush-Shia
Islam Naama
Auraq-e-Gul
Sirat-e-Mustaqeem
इलाही मिरे दोस्त हों ख़ैरियत सेये क्यूँ घर में पत्थर नहीं आ रहे हैं
हामिद अंदर जा कर अमीना से कहता है, “तुम डरना नहीं अम्माँ! मैं गाँव वालों का साथ न छोड़ूँगा। बिल्कुल न डरना लेकिन अमीना का दिल नहीं मानता। गाँव के बच्चे अपने-अपने बाप के साथ जा रहे हैं। हामिद क्या अकेला ही जाएगा। इस भीड़-भाड़ में कहीं खो जाए तो...
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानीमेरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी
हुज़ूर ख़ैरियत तो है हुज़ूर क्यूँ ख़मोश हैंहुज़ूर बोलिए कि वसवसे वबाल-ए-होश हैं
ज़िंदगी को ज़ख़्म की लज़्ज़त से मत महरूम कररास्ते के पत्थरों से ख़ैरियत मा'लूम कर
मुझे दाऊ जी के मौज़ू से भटक जाने का डर था इस लिए मैंने जल्दी से पूछा, "फिर आप ने हज़रत मौलाना के पास पढ़ना शुरू कर दिया।", "हाँ" दाऊ जी अपने आप से बातें करने लगे, "उनकी बातें ही ऐसी थीं। उनकी निगाहें ही ऐसी थीं जिसकी तरफ़ तवज्जो...
ये इनायतें ग़ज़ब की ये बला की मेहरबानीमिरी ख़ैरियत भी पूछी किसी और की ज़बानी
उसका रंग और भी ज़र्द पड़ गया जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो। ये तब्दीली उसके अंदर इतनी जल्दी पैदा हुई कि मैंने घबरा कर उससे पूछा, “ख़ैरियत तो है... आप बीमार हैं।” “नहीं तो... नहीं तो”, उसकी परेशानी और भी ज़्यादा हो गई।...
'वसीम' शहर में सच्चाइयों के लब होतेतो आज ख़बरों में सब ख़ैरियत नहीं होती
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