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ग़ज़ल
ख़ौफ़-ए-मीज़ान-ए-क़यामत नहीं मुझ को ऐ दोस्त
तू अगर है मिरे पल्ले में तो डर किस का है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
टुकड़े टुकड़े हैं जिगर के शीशा-ए-दिल चूर-चूर
ये क़यामत है तुम्हारी चाल की ढाई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
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शेर
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
लाला-ए-गुल ने हमारी ख़ाक पर डाला है शोर
क्या क़यामत है मुओं को भी सताती है बहार
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
दिल में शर्मिंदा हैं एहसास-ए-ख़ता रखते हैं
हम गुनहगार हैं पर ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रखते हैं