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ग़ज़ल
ग़ुलाम हुसैन साजिद
नज़्म
मेरी शायरी और नक़्क़ाद
दौड़ा मय-ख़्वार कि इक जाम-ए-मय-ए-तुंद पिए
ख़्वाहिश-ए-मर्ग मिरे सीने में होने लगी ज़ब्ह
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-मर्ग सर-ए-रिश्ता-ए-उम्मीद सही
आख़िर उलझे न कहीं वो गिरह-ए-दिल हो कर
अब्दुल हादी वफ़ा
ग़ज़ल
'आशिक़ान-ए-ज़ुल्फ़-ए-जानाँ के 'अजब अतवार हैं
ख़ुद गिरफ़्तार-ए-बला हों ख़्वाहिश-ए-रम भी करें
शकील इबन-ए-शरफ़
तंज़-ओ-मज़ाह
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
कभी तन्हाई की ख़्वाहिश ये होती है कि लोगों का
पयाम अच्छा नहीं लगता सलाम अच्छा नहीं लगता