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ग़ज़ल
शब-ए-ग़म न पूछ कैसे तिरे मुब्तला पे गुज़री
कभी आह भर के गिरना कभी गिर के आह भरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
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ग़ज़ल
बुलंदी के लिए बस अपनी ही नज़रों से गिरना था
हमारी कम-नसीबी हम में कुछ ग़ैरत ज़ियादा थी
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
'हसन' जब लड़खड़ा कर अपने ही पाँव पे गिरना हो
तो फिर एड़ी पे इतनी देर तक घूमा नहीं करते
हसन अब्बास रज़ा
ग़ज़ल
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
नज़र से गिरना भी गोया ख़बर में रहना है