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ग़ज़ल
देख कर रंग-ए-मिज़़ाज-ए-यार क्या कहिए 'फ़िराक़'
इस में कुछ गुंजाइश-ए-शुक्र-ओ-शिकायत भी तो हो
फ़िराक़ गोरखपुरी
तंज़-ओ-मज़ाह
इब्न-ए-इंशा
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ग़ज़ल
गुल-गूना-ए-तरक़्क़ी-तहज़ीब-ओ-'इल्म से
शुक्र-ए-ख़ुदा कि सुर्ख़ हैं रुख़्सार आज-कल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बुलबुलों से नहीं गुलज़ार-ए-ज़माना ख़ाली
शुक्र है याँ भी हम-आवाज़ नज़र आते हैं
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
बोसा माँगा तो कहा शुक्र-ए-ख़ुदा अच्छा हूँ
बात क्या जल्द उड़ाई है इलाही तौबा
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
शुक्र-ए-ख़ुदा-ए-पाक है ऐ 'नादिर'-ए-हज़ीं
उम्मत में हम रसूल की कहलाए जाते हैं
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
क़ैदी-ए-ज़ुल्फ़ की क़िस्मत में है रुख़्सार की सैर
शुक्र है बाग़ भी है मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार के पास
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
लेख
दिल में छुरी चुभो मज़ा गर ख़ूँ-फ़िशाँ नहीं गुंजाइश-ए-अ'दावत-ए-अग़्यार इक तरफ़...