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चंद ग़ैर-ज़रूरी ऐलानात

इब्न-ए-इंशा

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    बस मुसाफ़िरों के लिए मुज़्दा
     कराची में मालिक एसोसिएशन बड़े फ़ख़्र और मसर्रत से ऐलान करती है कि आज से शहर में तमाम बसों के किराए दुगुने कर दिए गए हैं। उम्मीद है मुहिब्ब-ए-वतन हलक़ों में इस फ़ैसले का आम तौर पर ख़ैर-मक़्दम किया जाएगा। क्योंकि इससे बस मालिकान की आमदनी पर ही नहीं, मुसाफ़िरों के मियार-ए-ज़िंदगी पर भी ख़ुशगवार असर पड़ेगा। एसोसिएशन हज़ा, किरायों में इज़ाफे़ के अलावा मुसाफ़िरों के लिए कुछ और सहूलतों का भी ऐलान करती है। मसलन हर बस में जहां फ़क़त चालीस सवारियों की गुंजाइश होती थी, अब इससे तीन गुना मुसाफ़िरों को जगह दी जाया करेगी। इस मक़सद से हर बस की छत में कंडों और तस्मों का इज़ाफ़ा कर दिया गया है और सीटें निकाल दी गई हैं जो ख़्वाह-मख़ाह खड़े होने वालों के घुटनों से टकराती थीं।

    पब्लिक की मज़ीद आसानी के लिए हर बस की छत पर, पायदानों पर, मड्गार्डों पर, इंजन पर हत्ता कि साइलेंसर तक पर मुसाफ़िरों के बैठने और खड़े होने की गुंजाइश निकाली गई है। इन ख़ुसूसी जगहों का किराया भी कुछ ज़ाइद नहीं होगा। शरह टिकट वही रहेगी जो अंदर बैठने की। यानी खड़े होने और लटकने वाले मुसाफ़िरों से वसूल की जाएगी। आइन्दा से सब मुसाफ़िरों के हुक़ूक़ भी मुसावी होंगे। यानी हर मुसाफ़िर को बस को धक्का लगाने का यकसाँ हक़ होगा हत्ता कि आधा टिकट लेने वाले बच्चों और बग़ैर टिकट सफ़र करने वाले माज़ूरों को भी। बसों में यतीम ख़ानों के लिए चंदा इकट्ठा करने वालों, और खट्टी मुट्ठी गोलीयां बेचने वालों को भी ये हक़ देने पर इस मीटिंग में ग़ौर किया जा रहा है जो कराची ट्रांसपोर्ट का मसला हल करने के लिए कमिशनर साहिब के दफ़्तर में अगले हफ़्ते हो रही है।

    2. पानी बंद रहेगा
     नाज़िम आबाद और नॉर्थ नाज़िम आबाद के बाशिंदों को मुज़्दा हो कि जुमे और हफ़्ते को उनके घरों का पानी बंद रहा करेगा। ये सहूलत रोज़ाना तेईस घंटे पानी बंद रहने की सहूलत के अलावा है। बा’ज़ मजबूरियों की वजह से फ़िलहाल हफ़्ते में दो दिन से ज़्यादा पानी मुकम्मल तौर पर बंद रखना मुम्किन नहीं। नागे के दिनों की तादाद रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ाई जाएगी। उम्मीद की जाती है कि माह मुहर्रम की आमद तक हम हफ़्ते के सातों दिन पानी बंद रखने में कामयाब होजाएंगे।

    इस के साथ साथ बलदिया कराची और के डी ए निहायत मसर्रत से ऐलान करती हैं कि अहल-ए-नाज़िम आबाद के एक देरीना मुतालिबे को तस्लीम करते हुए उस इलाक़े के वाटर टैक्स में फ़ौरी तौर पर तीन सौ फ़ीसदी इज़ाफ़ा किया जा रहा है। आगे चल कर इसमें और भी इज़ाफ़ा करने की कोशिश की जाएगी लेकिन के डी ए और बलदिया के रोज़-अफ़्ज़ूँ वसाइल और महदूद अख़राजात को देखते हुए फ़िलहाल उस की क़तई तौर पर ज़मानत नहीं दी जा सकती। अल्लामा इक़बाल टाउन नॉर्थ नाज़िम आबाद के पार्क में कामयाब तजुर्बे के बाद शहर के दूसरे पार्कों का पानी भी बंद किया जा रहा है ताकि ज़मीन भुरभुरी हो जाये और कुत्ते आसानी से उसमें लोट लगा सकें।

    3. आपका अपना स्कूल
     इंटरनेशनल इंग्लिश ऑक्सफ़ोर्ड स्कूल आपका अपना स्कूल है जो तालीम के जदीद तरीन उसूलों पर खोला गया है। चंद ख़सुसीयात:

    1.फ़ीस का मेयार निहायत आला। शहर का कोई और स्कूल फ़ीस के मुआमले में हमारे स्कूल का मुक़ाबला नहीं करता। अन्वा-ओ-इक़साम के चंदे उसके अलावा हैं, जिनकी तफ़सील प्रिंसिपल साहिब के दफ़्तर से मालूम की जा सकती है।

    2.असातिज़ा निहायत मेहनती, ईमानदार और क़नाअत पसंद जिनको बेशक़रार तनख्वाहों पर रखा गया है। आम टीचर की तनख़्वाह भी हमारे हाँ म्यूनिसपल कारपोरेशन के जमादार से कम नहीं और प्रिंसिपल का मुशाहिरा तो किसी बड़ी से बड़ी ग़ैरमुल्की कंपनी के चौकीदार की तनख़्वाह से भी ज़्यादा है।

    3.छुट्टियां- छुट्टीयों के मुआमले में भी हमारा स्कूल दूसरे स्कूलों पर फ़ौक़ियत रखता है। हर माह फ़ीस जमा कराने के दिन के अलावा क़रीब क़रीब पूरा साल छुट्टी रहती है। जो वालदैन साल भर की फ़ीस इकट्ठी जमा करादें, उनके बच्चों को फ़ीस के दिन भी हाज़िरी देने की ज़रूरत नहीं।

    4.माहौल- स्कूल निहायत मर्कज़ी और पुररौनक़ जगह पर वाक़े है और शहर का सबसे क़दीमी ओपन एयर स्कूल है। यहां तलबा-ए-को मुनाज़िर-ए-फ़ित्रत से मुहब्बत करना सिखाया जाता है। बिल्कुल सामने एक सिनेमा है और एक सर्कस। एक बग़ल में मोटर गैराज है और दूसरी तरफ़ गुड़ बाग़ीचा, जिसकी खाद सारे शहर को हरा-भरा रखने की ज़ामिन है। प्रोफ़ेसर केवी के उसूल के मुताबिक़ यहां पढ़ाई किताबों से नहीं कराई जाती बल्कि किसी और तरह भी नहीं कराई जाती ताकि तालिब-इल्म के ज़ेहन पर नारवा बोझ न पड़े।

    5.नतीजा- स्कूल का नतीजा कम अज़ कम सौ फ़ीसद रहता है। कई बार तो दो ढाई सौ फ़ीसद भी हो जाता है। कोई शख़्स ख़ाह वो तालिब-इल्म हो या ग़ैर तालिब-इल्म, इस स्कूल के पास से भी गुज़र जाये तो पास हुए बिना नहीं रह सकता। तालिब-ए-इल्मों पर इम्तहान में बैठने की कोई पाबंदी नहीं। सबको घर बैठे कामयाबी की सनदें भेज दी जाती हैं।

     

    स्रोत:

    Khumar-e-Gandum (Pg. 47)

    • लेखक: इब्न-ए-इंशा
      • प्रकाशक: लाहौर अकेडमी, लाहौर
      • प्रकाशन वर्ष: 2005

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