aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "चार-सू"
अबनाश चंद्र सूद
लेखक
सी. पी. चंद्र
चार-सू बारूद की बू चार-सू ख़ौफ़-ओ-हिरासबंद दरवाज़ों के पीछे मर्द-ओ-ज़न सब बद-हवास
बाज़गश्त चार-सू सदाओं कीबात क्या कीजिए नज़ारों की
चार सू हसरतों की पहनाईज़िंदगी किस तरफ़ चली आई
चार सू इंतिशार है क्या हैये ख़िज़ाँ है बहार है क्या है
चार-सू है ये कैसी ख़ामोशीकाश सुन पाओ गहरी ख़ामोशी
ईद एक त्यौहार है इस मौक़े पर लोग ख़ुशियाँ मनाते हैं लेकिन आशिक़ के लिए ख़ुशी का ये मौक़ा भी एक दूसरी ही सूरत में वारिद होता है। महबूब के हिज्र में उस के लिए ये ख़ुशी और ज़्यादा दुख भरी हो जाती है। कभी वो ईद का चाँद देख कर उस में महबूब के चेहरे की तलाश करता है और कभी सब को ख़ुश देख कर महबूब से फ़िराक़ की बद-नसीबी पर रोता है। ईद पर कही जाने वाली शायरी में और भी कई दिल-चस्प पहलू हैं। हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब पढ़िए।
ईद एक त्यौहार है इस मौक़े पर लोग ख़ुशियाँ मनाते हैं लेकिन आशिक़ के लिए ख़ुशी का ये मौक़ा भी एक दूसरी ही सूरत में वारिद होता है। महबूब के बहर में उस के लिए ये ख़ुशी और ज़्यादा दुख भरी हो जाती है। कभी वो ईद का चाँद देख कर उस में महबूब के चेहरे की तलाश करता है और कभी सब को ख़ुश देख कर महबूब से फ़िराक़ की बद-नसीबी पर रोता है। ईद पर कही जाने वाली शायरी में और भी कई दिल-चस्प पहलू हैं, जिन्हें आप इन नज़्मों से समझ सकते हैं |
चाँद उर्दू शाएरी का एक लोकप्रिय विषय रहा हैI चाँद को उसकी सुंदरता, उसके उज्ज्वल नज़ारे से उसके प्रतिरूप के कारण कसरत से उपयोग में लाया गया हैI शाएर चाँद में अपने माशूक़ की शक्ल भी देखता हैI शाएरों ने बहुत दिलचस्प अंदाज़ में शेर भी लिखे हैं जिनमें चाँद और माहबूब के हुस्न के बीच प्रतिस्पर्धा का तत्व भी मौजूद है।
चार-सूچار سو
In Four Directions/ In All Directions
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गुलज़ार जावेद
Jan, Feb 2020चहार-सू
Shumara Number-000
May, Jun 2017चहार-सू
Shumara Number-030,031
Jan, Feb 1995चहार-सू
Mar 2016चहार-सू
Apr 2005चहार-सू
May, Jun 2012चहार-सू
Mar, Apr 2015चहार-सू
Jan, Feb 2008चहार-सू
Shumara Number-026-027
Sep, Oct 1994चहार-सू
Jan, Feb 2016चहार-सू
Jul, Aug 2012चहार-सू
Sep, Oct 2017चहार-सू
सय्यद ज़मीर जाफ़री
Mar, Apr 1999चहार-सू
Nov, Dec 2000चहार-सू
Mar, Apr 2017चहार-सू
अब्र उतरा है चार-सू देखोअब वो निखरेगा ख़ूब-रू देखो
धज्जियाँ उड़ने लगीं इंसानियत की चार-सूदिल दरिंदा हो गया इंसान पथरीले हुए
सजा कर चार-सू रंगीं महल तेरे ख़यालों केतिरी यादों की रानाई में ज़ेबाई में जीते हैं
फैली हैं चार सू मिरे क्यूँकर उदासियाँइक बहर-ए-बे-अमाँ है ये बंजर उदासियाँ
चार सू इक उदास मंज़र हैज़ीस्त है जैसे एक वीराना
चार-सू फैले नज़र आए उजाले मेरेकोई आ देखे पड़े पैर के छाले मेरे
चार-सू है बड़ी वहशत का समाँकिसी आसेब का साया है यहाँ
ज़िक्र-ए-हू चार सू करें कैसेहर्फ़-ए-हक़ रू-ब-रू करें कैसे
चार सू ख़ौफ़-ए-तीरगी है बहुतशब को एहसास-ए-बरतरी है बहुत
ये मिरे चार-सू इक तमाशा लगेआलम-ए-रंग-ओ-बू इक तमाशा लगे
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