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ग़ज़ल
ख़त अधूरे थे मगर वो चिट्ठियाँ अच्छी लगीं
काग़ज़ों से ही सही नज़दीकियाँ अच्छी लगीं
प्रमोद पुन्ढ़ीर प्यासा
ग़ज़ल
लिखते लिखते रुक गए थे वो सिसक कर जिस जगह
पढ़ते पढ़ते उस जगह वो चिट्ठियाँ चुप हो गईं
अनुराग अर्श
ग़ज़ल
ख़ौफ़-ए-रुस्वाई से घबरा कर जला देती हूँ मैं
चिट्ठियाँ फ़ौरन तिरी पढ़ कर जला देती हूँ मैं
शाहीन अमरोही
शेर
क़ासिद है तू ख़ुदा का अगर चिट्ठियाँ ही बाँट
उन चिट्ठियों पे तो लिखा अपना पता न देख