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नज़्म
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शर्त इंसाफ़ है ऐ साहिब-ए-अल्ताफ़-ए-अमीम
बू-ए-गुल फैलती किस तरह जो होती न नसीम
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
(ये मेरी एक ख़्वाहिश है जो मुश्किल है)
वो 'नज्म'-आफ़ंदि-ए-मरहूम को तो जानती होगी
जौन एलिया
ग़ज़ल
तिरे मनचलों का जग में ये अजब चलन रहा है
न किसी की बात सुनना, न किसी से बात करना