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तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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ग़ज़ल
अपनी राम-कहानी में भी जग-बीती का जादू था
पलकें झपकी जाती हैं अब ख़त्म हुआ अफ़्साना क्या
ख़लीक़ सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ग़ज़ल के रूप में हम आज ज़ख़्म-ए-दिल दिखाते हैं
न समझो आप-बीती तुम को जग-बीती सुनाते हैं
अहमद फ़ाख़िर
ग़ज़ल
सुनो टुक गोश-ए-दिल से क़िस्सा-ए-जाँ सोज़ को मेरे
कि जग-बीती नहीं है आप-बीती ये कहानी है