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नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
या नुमायाँ बाम-ए-गर्दूं से जबीन-ए-जिब्रईल
वो सुकूत-ए-शाम-ए-सहरा में ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब
अल्लामा इक़बाल
शेर
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आवाज़-ए-आदम
जबीन-ए-कज-कुलाही ख़ाक पर ख़म हम भी देखेंगे
मुकाफ़ात-ए-अमल तारीख़-ए-इंसाँ की रिवायत है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मैं फ़क़ीर आस्ताँ हूँ मिरी लाज रख ख़ुदारा
ये जबीन-ए-शौक़ मेरी तिरे दर पे झुक गई है
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
हमारे डूबने के बाद उभरेंगे नए तारे
जबीन-ए-दहर पर छटकेगी अफ़्शाँ हम नहीं होंगे
अब्दुल मजीद सालिक
नज़्म
शाम-ए-अयादत
क़दम क़दम पे दे उठी है लौ ज़मीन-ए-रह-गुज़र
अदा अदा में बे-शुमार बिजलियाँ लिए हुए